पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/५६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३३
भाषण: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें

यदि सम्भव हो तो ऐसा दल बनाना अभीष्ट है। योग्यताएँ भी ठीक हैं। पर अनुभव कहता है कि अभी हम लोगोंकी अवस्था ऐसी नहीं है कि समग्र भारतवर्षंके लिए हम लोग कोई ऐसा दल बना सकें। केवल प्रस्ताव पास करनेसे ऐसा दल नहीं उत्पन्न हो जायेगा।

आज, १९-२-१९२७

२२६. भाषण: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें

बनारस
 
९ जनवरी, १९२७
 

गांधीजीने कहा कि कुछ हल्कोंसे मुझे ऐसी सलाह दी जा रही है कि आपको जो कहना था सो तो अब बहुत कह चुके। अब आपकी कोई नहीं सुन रहा है। फिर आप खादीको बात करना बन्द क्यों नहीं कर देते ?

लेकिन मैं अपने प्रिय मन्त्रका जाप करना क्यों छोड़ दूँ? क्या मेरे सामने प्रह्लादका वह प्राचीन उदाहरण नहीं है? उसे मृत्युसे भी अधिक कठोर यातनाएँ दी गईं लेकिन उसने रामनामका जाप नहीं छोड़ा। मुझे तो अबतक कोई यातना भी नहीं सहनी पड़ी है। फिर मैं लोगोंको वह सन्देश देना कैसे बन्द कर सकता हूँ जो देशकी स्थिति मेरे कानोंमें आकर बार-बार सुना रही है ? पंडितजीने आपके लिए राजाओं-महाराजाओंसे लाखों रुपये इकट्ठे किये और आज भी कर रहे हैं। देखने में तो लगता है कि यह पैसा धनाढ्य राजाओं-महाराजाओंसे मिलता है, लेकिन वास्तवमें करोड़ों गरीब लोगोंसे ही मिलता है। कारण यह है कि यूरोपके विपरीत हमारे यहाँके धनाढ्य लोगोंका धन हमारे उन ग्रामीण भाइयोंकी कीमतपर ही बढ़ता है जिनमें से अधिकांशको दिनमें एक बार भी पूरा भोजन नहीं मिलता। इस प्रकार आप जो शिक्षा पाते हैं, उसकी कीमत वे क्षुधार्त ग्रामवासी चुकाते हैं जिन्हें यह शिक्षा कभी भी नसीब नहीं होगी। इसलिए आपका यह कर्त्तव्य है कि जो शिक्षा आपके गरीब भाइयोंकी पहुँचसे परे है, वह शिक्षा ग्रहण करना आप बन्द कर दें। किन्तु आज में आपसे यह करनेको नहीं कह रहा हूँ। आज तो मैं आपसे उनके लिए मात्र एक छोटा-सा

१. डॉ० भगवानदासको टिप्पणीके अनुसार इस प्रश्नोतरका अधिकांश भाग हिन्दीमें था। केवल कुछ अंश हो अंग्रेजीमें था जिसका हिन्दी अनुवाद कर दिया गया था। प्रकाशनसे पूर्व इस प्रश्नोत्तरके प्रूफ महात्माजीको दिखला लिये गये थे और उनकी स्वीकृतिके बाद ही आजमें उन्हें प्रकाशित किया गया ।

२. इस सभाका आयोजन गांधीजीके आगमनसे सप्ताह भर पूर्व वाइसरायके आगमनके अवसरपर खड़े किये गये शामियाने में किया गया था। सभामें लगभग २००० विद्यार्थी मौजूद थे। यह रिपोर्ट महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से ली गई है।

३. पण्डित मदनमोहन मालवीय ।