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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यज करके उनके उपकारका थोड़ा-सा प्रतिदान ही देनेको कह रहा हूँ । कारण, 'गीता' में कहा है कि जो व्यक्ति यज्ञ किये बिना खाता है वह चोरीका माल खाता है । युद्धकालमें ब्रिटेनके तमाम नागरिकोंसे जिस यज्ञकी अपेक्षा की जाती थी वह यह था कि हर परिवार अपनी बाड़ीमें आलू पैदा करे और हर परिवार थोड़ी-सी सीधी-सादी सिलाई किया करे | हमारे लिए हमारे युगका यज्ञ चरखा चलाना है। मैं दिन-रात इसके बारेमें कहता रहा हूँ, लिखता रहा हूँ। अब आज और अधिक नहीं कहूँगा । अगर भारतके गरीबोंका यह सन्देश आपके हृदयको छू पाया है तो मैं आपसे कहूँगा कि आप कल ही कृपालानीके खादी भण्डारपर धावा बोल दें और उसके सारे मालको खरीदकर उसे खाली कर दें तथा आजकी रात अपनी जेबोंको बिलकुल खाली कर डालें। पंडितजीने भिक्षाटन कलाको खूब सिद्ध कर लिया है। मैंने भी यह कला उन्हींसे सीखी है, और अगर वे राजाओं-महाराजाओंसे धन वसूल करने में सिद्धहस्त हैं तो मैंने भी गरीबोंकी जेबोंको उनसे भी गरीब लोगोंकी खातिर खाली करवाने के लिए उतनी ही बेहयाई बरतना सीखा है।

आपके लिए लाखों रुपये भीख माँगने, आपके लिए ये शानदार इमारतें खड़ी करनेमें, मालवीयजीका एक उद्देश्य यहाँसे विशुद्धतम कान्तिवाले रत्न तैयार करके देशको देना है, और मातृभूमिकी सेवाके लिए अच्छे और सशक्त नागरिक प्रस्तुत करना है। अगर आप उस हवाके झोंकेमें बह जायेंगे जो पश्चिमसे आ रही है तो उनका उद्देश्य विफल हो जायेगा । ऐसा नहीं है कि सारा यूरोप इन तरीकोंका हामी है। एैसे यूरोपीय भाई भी हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है, जो उस विषाक्त प्रवृत्तिको रोकनेके लिए संघर्षरत हैं। लेकिन, अगर आप समय रहते सचेत नहीं हो जायेंगे तो अनैतिकताका जो झंझावात तेजीके साथ बल पकड़ रहा है, वह इतना प्रबल हो जा सकता है कि आपको अपनी चपेटमें लेकर बिलकुल विवश कर दे। इसलिए में अपने हृदयकी समस्त शक्तिसे आपसे कहता हूँ : सावधान हो जाइए, इस आगसे समय रहते बच निकलिए, अन्यथा यह आपका सर्वनाश कर देगी ।

[ अंग्रे जीसे ]

यंग इंडिया, २०-१-१९२७