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२२७. भाषण : श्रद्धानन्द-स्मृति सभा, बनारसमें

९ जनवरी, १९२७
 

महात्माजीने कहा कि आज बड़ा पवित्र दिन है और यह सभा भी बहुत अच्छे स्थानपर हो रही है जहाँ मन्दिर और मस्जिद बगल-बगलमें हैं। कोई मुसलमान स्वामी श्रद्धानन्दजीको शत्रु समझता हो तो वह गलती करता है। वे वीर पुरुष थे । उनको वीर गति प्राप्त हुई। वे धर्म और सत्यके अनुसार बड़े साहस और वीरतासे अपना काम करते रहे।

आज, १०-१-१९२७

२२८. भाषण : अस्पृश्योंकी सभा, बनारस में

९ जनवरी, १९२७
 

महात्माजीने कहा :

आपका अभिनन्दनपत्र पाकर मैं अपने को कृतार्थ हुआ समझता हूँ । यदि मुसल- मान समझ लें तो आजका दिन उनके लिए भी पत्रिव है, क्योंकि स्वामी श्रद्धा- नन्दकी आत्मा तथा गुणोंका स्मरण करनेके लिए हम लोगोंने आज गंगा-स्नान किया है। हमने इसलिए स्नान किया है कि उनके गुण हममें भी आ जायें। स्वामीजी अछूतोंके मित्र थे, उनके दुःखसे वे दुःखी होते थे, इसीके कारण उन्होंने देहका त्याग किया। यह अच्छा ही है। यदि किसीका धर्मके कारण खून किया जाये तो जिसका खून होता है उसका भला ही होता है, उसके लिए इससे बढ़कर कोई मृत्यु नहीं है। स्वामीजी इतने सख्त (दृढ़) थे कि जहाँ अछूतोंको जानेका अधिकार नहीं था वहाँ उन्हें स्वयं भी जाने में कष्ट होता था, जैसा कि युधिष्ठिर बगैर अपने कुत्तेको साथ लिए स्वर्ग में नहीं जाना चाहते थे। अछूतोंमें दोष भी हैं। कुछ अछूत शराब पीते हैं। यह छोड़ना चाहिए। यह न कहना चाहिए कि दूसरे वर्ण तो पीते हैं, क्योंकि अछूतोंको आगे बढ़ना है। गुणोंका अनुकरण करना चाहिए, दोषोंका नहीं । जुआ नहीं खेलना चाहिए । झूठ नहीं बोलना चाहिए, साफ रहना चाहिए । हमको सुबह-शाम ८ 2 राम-राम कहकर अपनी आत्माकी शुद्धि करनी चाहिए। हम सबको खद्दर ही पहनना चाहिए, क्योंकि इससे गरीबोंको जीविका मिलती है। आज देशभरमें स्वामीजी- के नामपर अछूतोद्धारके लिए चन्दा इकट्ठा होगा । हम चाहते हैं कि कमसे-कम एक-एक पैसा आप लोग भी दें ।

अन्तमें महात्माजीने ईश्वरसे प्रार्थनाकी कि अछूत कहानेवाले लोगोंका हृदय पवित्र हो और वे भी हिन्दू जातिके स्तम्भ बनें ।

आज १०-१-१९२७

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