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२२९. भाषण : महिलाओंकी सभा, बनारसमें '

९ जनवरी, १९२७
 

भगिनियो, में अभी एक सभासे आ रहा हूँ और एक बड़ी सभामें जाना है। अगर आप लोग शान्त होकर सुने तो मैं आपसे दो बातें कहूँ। पहली बात तो यह कि अगर आप हिन्दुस्तान में स्वराज्य यानी रामराज्य चाहती हैं तो आप सीताकी तरह शुद्ध हों। सीताजी अपने मन और शरीर दोनोंसे पवित्र थीं। लंकासे वापस आनेपर जब उनकी अग्नि-परीक्षा हुई तो अग्निने उन्हें स्पर्शतक नहीं किया । क्यों ? इसलिए कि वे शरीर ही से नहीं बल्कि हृदयसे भी शुद्ध थीं। उस समय विलायतसे कपड़ा नहीं आता था, विलायती वस्त्र नहीं पहना जाता था । सब चरखा चलाती थीं और खादी पहनती थीं। विदेशी वस्त्रोंसे कोई सौन्दर्य नहीं बढ़ता । मन और शरीरको पवित्र करना ही असली सौन्दर्य है । मन और शरीरको पवित्र रखनेवाली स्त्री ही हमारी पूज्य हो सकती है। इसलिए बहिनो, तुम खादी पहनो और चरखा चलाओ और पवित्र बनो । अपने लड़के-लड़कियोंको भी खादी पहनाकर शुद्ध बनाओ । खादीके कार्यके लिए अगर आप लोग कुछ देना चाहती हों तो मुझे दें ।

दूसरी बात जो मैं आज आप लोगोंसे कहना चाहता हूँ वह स्वामी श्रद्धानन्दजीकी मृत्युके बारेमें है। वे मरे नहीं, बल्कि हमारे हृदयमें जीवित हैं। वे वीर थे, उनकी आत्मा महान् थी। हम लोगोंने आज गंगा-स्नान किया और उनको श्रद्धांजलि दी और ईश्वरसे प्रार्थना की कि वह उनके गुण हमको भी दे ताकि हम उनके कार्यको कर सकें ।

आज, १२-१-१९२७

२३०. भाषण: बनारसको सार्वजनिक सभामें

९ जनवरी, १९२७
 

महात्माजीने उत्तरमें अभिनन्दनपत्रके लिए धन्यवाद देते हुए कहा :

[ म्युनिसिपल ] बोर्ड द्वारा दिये गये पत्रमें यह बात कही गई है कि मैं काशीजी- से अपना नया कार्य शुरू कर दूं। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि मैं यहाँ कोई नया कार्य बताने नहीं आया हूँ और न मुझे किसी नये कामका पता ही है। इसलिए जो लोग कोई नया कार्यक्रम जानने के लिए यहाँ आये होंगे उनको नाउम्मीद होना पड़ेगा और उसका मुझे दुःख है। मैं जिस बातमें लोगोंकी भलाई समझता हूँ वही लोगोंके सामने रखता हूँ। हमारे हिन्दुस्तानमें जितनी कंगाली है, जितनी गरीबी है उतनी दुनियामें कहीं नहीं है। गरीबोंके लिए काम चाहिए, किसानोंके लिए चार महीने

१. यह हिन्दू स्कूलके काशी नरेश हॉलमें हुई थी।