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भाषण: बनारसकी सार्वजनिक सभामें

वास्ते काम चाहिए। गरीबोंको पैसा दे देने से हमारे उद्देश्यकी पूर्ति नहीं हो सकती । इससे वे भिखारी हो जायेंगे। उनके लिए और किसानोंके लिए सबसे अच्छा काम चरखा है। इससे बढ़कर आसान धन्धा अभीतक मुझे किसीने नहीं बताया । इसलिए मेरी आप लोगोंसे प्रार्थना है कि आप खादी पहनें, चरखा चलायें और इस काम में मदद दें। आपसे मेरी प्रार्थना है कि सभा खतम होनेपर आप लोग खादी प्रदर्शनी देखने जायें । उसको देखने के बाद आपको मालूम हो जायेगा कि कितनी अच्छी खादी तैयार होती है। अगर खादीके काममें हमें लोगोंसे मदद मिले तो इससे दस गुना काम हो सकता है।

हमारे दिलमें खुदा रहता है। हम उससे पूछें तो मालूम होगा कि गरीबोंके हाथ से बने हुए कपड़ोंको पहनना हमारा कर्त्तव्य है। विदेशी लोग तो अपना माल देनेके लिए हमें मुफ्त में कपड़ा दे सकते हैं। जो लोग गरीबोंके लिए दो पैसा अधिक देने से डरते हैं, वे सच्चे सनातनधर्मी और पाक मुसलमान नहीं हो सकते। जो गरीबोंकी मदद नहीं कर सकते उनका ईश्वरका नाम लेना व्यर्थ है।

मैं बंगाली टोला, और हिन्दू स्कूलसे स्त्रियोंकी सभासे आ रहा हूँ । स्त्रियोंने कुछ चन्दा दिया है। उन्होंने गहना भी उतार कर दे दिया है। यहाँ भी बहनें मौजूद हैं। उनसे भी कहता हूँ कि वे सीताजीकी तरह पवित्र बनें। उनकी जब अग्नि-परीक्षा ली गई, उन्होंने जब अग्निमें प्रवेश किया तो भी वे जली नहीं, अग्निने उन्हें स्पर्श नहीं किया। सीताजीके बदनसे विदेशी वस्त्र छू भी नहीं गया था। सीताजी और उनकी दासी चरखा चलाती थीं । सीताजीके युगमें सूत काता जाता था और उसीका बुना हुआ वस्त्र हम पहनते थे । स्त्रियोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे भी चरखा चलायें और खादी पहनें ।

अब मुझे सुनाया जाता है कि में हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नके मामलेमें क्यों चुप रहता हूँ। यह प्रश्न अब हमारे हाथोंसे निकल गया है। आज स्वामी श्रद्धानन्दजीको जलांजलि देनेका दिन है। हमें चाहिए कि हम उनकी आत्माके साथ मिलन करें। एक भाई पागल हो गया और उसने उनकी हत्या कर दी। उनकी वस्तुतः मृत्यु नहीं हुई है। वे अब भी जीते हैं। अगर वह आदमी पागल न हो गया होता तो यह बात नामु- मकिन थी। मेरे पास पत्र आते हैं कि इस घटनाके पीछे बहुतसे लोग हैं। मुझे इन सबका पता नहीं है। पर मैं यह जानता हूँ कि उनकी हत्या 'कुरान' के विरुद्ध है। श्रद्धानन्द मुसलमानोंके दुश्मन थे, यह मैं नहीं मान सकता। उनकी सब बातोंसे मेरी सहमति न थी, उनके सब मतोंसे मैं सहमत न था, तो भी में कई दफा कह चुका हूँ कि मुसलमान लोग स्वामी श्रद्धानन्दजी, मालवीयजी और लालाजीको दुश्मन न समझें । सबको स्वतन्त्रता और निर्भयताके साथ अपने खयालोंको प्रकट करनेका अधिकार है। अपना धर्म बतानेका सबको अधिकार है। स्वामीजी सब जीवोंके साथ दया करने- वाले थे। अब तो अछूतोंके साथ बहुत-कुछ मनुष्यताका व्यवहार होने लगा है। इस सम्बन्धमें हम बहुत कुछ आगे बढ़े हैं और उन्नति की है। स्वामी श्रद्धानन्दजीने बहुत शुरूसे इस बारेमें काम किया है। अछूतोद्धार उनके कार्यका मुख्य अंग था ।