अब दिन आ रहा हैकि हिन्दू और मुसलमान अपना दिल साफ करेंगे और तब ईश्वर प्रसन्न होगा। स्वामीजीकी आत्माको प्रसन्न करने का उपाय यही है कि उनके अछूतोद्धारके काममें आप लोग मदद दें ।
हिन्दुओंसे मुझे कहना है कि वे अस्पृश्यताका कलंक धो डालें। यही सच्ची शुद्धि होगी। वे बदला लेनेका भाव अपने मनमें न लावें । अगर वे ऐसा खयाल करेंगे तो वे श्रद्धानन्दजीकी आत्माको दुःखी करेंगे और यह हिन्दू धर्मके लिए कलंकको बात होगी। पागलपनका जवाब पागलपन नहीं हो सकता। हिन्दुओंसे मेरी प्रार्थना है कि वे बदला लेने की कोशिश न करें, इरादातक न करें। ऐसा करना स्वामी श्रद्धानन्दजीकी आत्माको दुःख देना होगा।
मुसलमानोंसे मेरा कहना है कि मैं चाहता हूँ कि एक मुसलमान भी ऐसा न हो जो अपने कमरेमें बैठकर स्वामी श्रद्धानन्दजीकी हत्याकी बातको पसन्द करे। 'कुरान' में ऐसी बातका हरगिज समर्थन नहीं किया जा सकता । हम सब अगर हिन्दुस्तानको आजाद करना चाहते हैं तो हमें चाहिए कि हम अपने दिलोंको साफ करें।
आज, १२-१-१९२७
२३१. पत्र : मीराबहनको
असंशोधित
चि० मीरा,
तुम्हारा पत्र मिला, या कहूँ कि तुम्हारे पत्र मिले ? स्टेशन जानेका समय हो गया है, फिर भी यह खत लिख रहा हूँ ।
तुम्हें जो तरह-तरह के अनुभव हो रहे हैं, उन सबसे मुझे खुशी है। जबतक तुम अपना स्वास्थ्य और मानसिक सन्तुलन बनाये रखोगी, मैं तुमसे नाराज नहीं होऊँगा । बाकी तो हम भूलें करके ही सीखते हैं। ऐसा नहीं कि मेरी जानमें तुमने कोई भूल की है। परन्तु जहाँ भूल होनेका ज्ञान हो, वहाँ अधिकांश मामलोंमें सुधार कर लेने की तैयारी ही काफी प्रायश्चित्त और इलाज है।
काशीमें मुझे बहुमूल्य अनुभव हुए, मगर उनकी चर्चा करनेका मेरे पास समय नहीं है।
सस्नेह,
अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१९६) से।
सौजन्य : मीराबहन
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