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पत्र : मीराबहनको

तुमने जिस दलीलसे काम लिया है, वह मेरी रायमें दोषपूर्ण है। जिस चीजके लेने- की जरूरत न हो या इच्छा न हो, उसका स्वाद हमें क्यों जानना चाहिए? क्या तुम्हें मालूम है कि हर तरहकी बुराईको उचित ठहराने के लिए हमेशा यही दलील दी गई है ? यह वर्जित सेवका' लाखों बार दोहराया हुआ किस्सा है; यानी यह प्रश्न कि जिस चीजको लेने या छूने से मुझे मना किया जाता है, उसका स्वाद मुझे क्यों नहीं जानना चाहिए। मगर तुम्हें चिन्ता नहीं करनी चाहिए । अगर मेरा तर्क तुम्हारी समझमें न आये तो तुम्हें मुझसे धीरजके साथ बहस करनी चाहिए। अगर तुम मेरे तर्ककी कद्र करती हो तो वह भविष्यमें चेतावनीका काम दे सकेगा। मगर इसका परिणाम आत्म-प्रताड़ना नहीं होना चाहिए। इसकी कोई जरूरत नहीं। तुच्छ है। परन्तु तुच्छ बातोंमें भयंकर सम्भावनाएँ छिपी रहती हैं। इसलिए मैंने पिताकी तरह तुम्हें सावधान किया है।

अब तुमने कन्या गुरुकुलका जो विश्लेषण किया है, उसके सम्बन्धमें। मैं आशा करता हूँ कि तुमने विद्यावतीसे इसके बारेमें बात की है। लेकिन तुम्हें इसके बारेमें आचार्य रामदेव और आचार्य सेठीसे खुलकर बात करनी चाहिए। आचार्य रामदेव उनके पथ-दर्शक हैं और उनको जॅच जाये तो तत्काल सुधार किया जा सकता है। मैं उन्हें तुम्हारे पत्रका सम्बन्धित अंश उद्धृत करके भेजूंगा। उससे तुम्हारी स्थिति काफी स्पष्ट हो जायेगी । अस्वच्छता और अनुशासनहीनता समाप्त होनी ही चाहिए । मुस्लिम- विरोधी भावना जरा ज्यादा टेढ़ी खीर है। लेकिन तुम्हें अपना कर्त्तव्य करना है। अगर रोका जा सके तो छोटी बालिकाओंके दिमागमें जहर न घोलना चाहिए। लेकिन इन सभी बातोंकी चर्चा करते हुए भी अपनी सीमाओंका ध्यान रखना। तुम वहाँ हिन्दी सीखने और अनुभव प्राप्त करने गई हो, सुधार करने या शिक्षा देने नहीं। इसलिए तुम जो-कुछ कहो, सिर्फ सुझावके तौरपर यों ही कहो, जिसे चाहे स्वीकार किया जाये, चाहे न किया जाये। तुम्हारा अपना आचरण ही सुधारकी दिशामें पर्याप्त प्रयत्न है।

यह पत्र में चलती गाड़ीमें अपने मौनके दरमियान लिख रहा हूँ । मौन रातके नौ बजे खुलेंगा ।

सस्नेह,

बापू
 

[ पुनश्च : ]

हाँ, जब तुम तकली-कताईका निरीक्षण करने दिल्ली जाओ तो ब्रजकिशनके यहाँ ठहर सकती हो ।

बापू
 

[पुनश्च : ]

क्या तुम मेरा लिखा पढ़ पाती हो ?

अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१९५) से ।

सौजन्य : मीराबहन

१. घाइबिलका आदम और हौवाका प्रसिद्ध किस्सा |