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टिप्पणियाँ

पह्नता, और अगर सरकारकी ओरसे इसका निश्चित निषेध किया जाता तो मैं नौकरीसे इस्तीफा दे देता। [१]

यह टिप्पणी लिख चुकनेके बाद श्रीयुत सी० पी० रंगम् चेट्टीको मद्रास सर- कारके भेजे हुए एक पत्रकी नकल मिली है। पत्र इस प्रकार है — "चरखा संघके प्रबन्धकको सूचना दी जाती है कि सरकारी नौकरोंमें उनके पत्र में लिखे हुए भय या मान्यता (खादी खरीदनेसे सरकारकी नाराजगी) के होने का कोई कारण नहीं है।" में दोनों पक्षोंको बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि अगर कोई सरकारी नौकर भयसे खादी न खरीदते हों तो वे अब अपना भय और विलायती कपड़ेका उपयोग छोड़ देंगे।

खादी कार्य और स्वयंसेवक

डा० हार्डीकरने हिन्दुस्तानी सेवा दलकी कर्नाटक शाखाको जो काम करने हैं, उनसे सम्बन्धित प्रस्ताव मेरे पास भेजे हैं। में उस प्रतिमें से निम्न अंश यहाँ दे रहा हूँ:

हिन्दुस्तानी सेवा दलकी कर्नाटक शाखा के संगठनकर्त्ताओं और कार्य-कर्त्ताओंकी एक बैठक १३, १४ और १५ अक्तूबर, १९२६ को हुबलीमें हुई थी। इसकी अध्यक्षता होसकोप्पा कृष्णरावने की। बैठकमें पूर्ण विचार-विनिमयके बाद दलके भावी कार्यक्रमके सम्बन्धमें निम्न प्रस्ताव पास किये गये:

प्रस्ताव १: — कर्नाटक दलके संगठनकर्त्ताओं और कार्यकर्त्ताओंकी यह बैठक निश्चय करती है कि उन्हें अपना ध्यान निम्न कार्यक्रमपर केन्द्रित करना चाहिए:

(क) पहली फरवरी, १९२७ से लेकर १३ अप्रैल, १९२७ की आधी रातको पूरे होनेवाले बहत्तर दिनोंमें कर्नाटक ४०,००० (चालीस हजार) रुपयेकी खादी बेची। (इन्हीं दिनोंके भीतर राष्ट्रीय सप्ताह आ जाता है)। महात्मा गांधी, श्रीयुत जी० बी० देशपाण्डे और एस० वी० कौजलगीसे सलाह करके डा० हार्डीकर और श्री होसकोप्पा कृष्णराव इस योजनाको अन्तिम रूप देंगे।

टिप्पणी :— इस कार्यका आरम्भ पहली फरवरी, १९२७ तक इसलिए स्थगित कर दिया गया है कि असम कांग्रेसके आदेशानुसार दलको मध्य नवम्बरसे पूर्ववर्ती अवधि में अपनी सारी शक्ति गौहाटीमें केन्द्रित करनी है।

यह खादी-सम्बन्धी एक अच्छा कार्यक्रम है। यदि यह पूरा हो जाये तो दल एक अच्छा काम सम्पन्न करेगा। इस सम्बन्धमें मेरा और मेरे साथी कार्यकर्त्ताओंका जो अनुभव है, उसपरसे में यहाँ बता दूं कि खादीका कार्य तबतक नहीं फलफूल सकता जबतक खादीके मुख्य कार्यकर्त्ताओंको कपास ओटने, रुई धुनने और सूत कातनेका वैज्ञानिक ज्ञान न हो, वे कपासकी कई तरहकी किस्मोंको न पहचानते हों और

  1. यहाँका अंश यंग इंडियासे अनुवादित है। इसके बादका अनुच्छेद हिन्दी नवजीवनसे लिया गया है। यंग इंडियामें यह अनुच्छेद नहीं है।