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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तीय देशबन्धु-स्मारक कोष शुरू किया गया है जिसका उपयोग अखिल भारतीय चरखा संघ द्वारा किया जायेगा। उन्होंने उन परिस्थितियोंका उल्लेख किया जिनमें कि अखिल-बंगाल स्मारक कोषको अस्पतालपर खर्च करने की अनुमति दी गई थी और कहा कि मैंने उसी समय खद्दर कार्यके लिए अखिल भारतीय कोषमें धन देने की अपील की थी। महात्माजीने कहा कि देशबन्धुकी अन्तिम इच्छा पूरी करनेमें आप सबके लिए अपना-अपना योगदान करनेका यही अवसर है। इस कोषके लिए चन्दा देकर दाता एक साथ दो काम कर सकता है: जो देशबन्धु आपके लिए जिये और आप ही के लिए मरे, एक तो उनकी स्मृतिका आप सम्मान करेंगे, और दूसरे आप गरीबोंको काम और पैसेसे मदद करेंगे ।

आगे बोलते हुए महात्माजीने कहा कि एक गज खद्दर खरीदनेका अर्थ है देशके गरीब लोगोंको लगभग ४ आनेकी मदद T, जबकि विदेशी कपड़ेपर पैसे खर्च करनेका अर्थ है देशभाइयोंको अकथनीय कष्ट देते हुए उसी पैसेको देशसे बाहर भेजना। भारतीय मिलोंका कपड़ा खरीदनेका अर्थ गरीबोंकी मदद करना नहीं है, क्योंकि उसमें मुनाफेका सबसे ज्यादा भाग पूँजीपतिको मिलता है और वह श्रमिकोंको नाम मात्रका थोड़ा-सा ही पैसा देता है जो उन्हें जीवित रखने-भरको भी काफी नहीं है। गांधीजीने कहा कि भारतीय मिलोंके बने कपड़े खरीदने में खर्च किये जानेवाले धनका तीन-चौथाई हिस्सा पूँजीपतियों को पहले से ही खचाखच भरी तिजोरियोंको ही और भरता है, जबकि श्रमिकोंको, जो सचमुचमें जरूरतमंद हैं, कुल मिलाकर मुनाफे- के एक चौथाई हिस्सेसे ज्यादा नहीं मिलता है। देशको गरीबीसे संघर्ष करने और उसमें सफलता पानेके लिए चरखा ही एकमात्र प्रभावशाली अस्त्र है।

इसके बाद महात्माजीने धनके लिए अपील की। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि सभी उपस्थित लोग अपनी शक्ति-भर इस महान कार्यके लिए चन्दा दें और यदि उनके पास अभी इस समय देनेको न हो तो बादमें अधिकृत व्यक्तिके पास भेज दें। उन्होंने उस हॉलमें उपस्थित श्रोताओं से कहा कि आप गम्भीरतापूर्वक वादा करें कि आगेसे हमेशा केवल खद्दर पहनेंगे। उन्होंने कहा, मैं तो आप लोगोंसे कहूँगा कि यदि आपके पास विदेशी वस्त्र हैं तो उन्हें जला दें। लेकिन यदि आप इस हदतक नहीं जा सकते तो आपको बिना संकोच अब आगेसे सभी विदेशी वस्त्रों- का बहिष्कार करना चाहिए । खद्दर (का काम) मेरे जीवनको अदम्य अभिलाषा बन गया है क्योंकि मैंने देख लिया है कि सिर्फ खद्दर ही गरीबोंको भोजन दे सकता है। लोग मुझे पागल कह सकते हैं, लेकिन मैं इस कामको किसी भी चीजकी खातिर नहीं छोड़ सकता। उन्होंने हॉलमें उपस्थित हर व्यक्तिसे कहा कि वह जो भी थोड़ा बहुत दे सके, दे। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं चाहता कि लोग डरसे या शर्माशमसे धन दें; मैं चाहता हूँ कि हर व्यक्ति इस उद्देश्यको महानताको महसूस करे और तब फिर जो भी उसकी ताकत भर हो सके, करे।