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भाषण : धनवादमें

अस्पृश्यताकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह हिन्दू समाजका सबसे बड़ा कलंक है और इसे यथासम्भव जल्दीसे-जल्दी मिटा देना चाहिए। हिन्दू धर्म कभी किसी- को ऐसी शिक्षा नहीं देता कि वह किसी दूसरे व्यक्तिको अस्पृश्य माने । अस्पृश्यता- की प्रथाको मानकर हिन्दू लोग पाप कर रहे हैं। स्वामी श्रद्धानन्दजीने अस्पृश्यता- निवारणके लिए अपने प्राण दे दिये हैं। आपका कर्त्तव्य है कि आप गरीबों और अस्पृश्योंकी सेवाका काम उठायें ।

प्रसंगवश महात्माजीने हिन्दू-मुस्लिम तनावकी भी चर्चा की, और स्वामीजीकी हत्याकी घोर निन्दा की। लेकिन उन्होंने कहा, यदि हिन्दू मुसलमान दोनों ही उनके खूनसे अपने दिल धोकर स्वच्छ बना लें तो स्वामीजी की मृत्यु भी लाभकारी बन सकती है। वैसा करना शुद्धिकी क्रिया होगी, वह एक सच्चा शुद्धिका कार्य होगा। हिन्दुओंका क्या कर्तव्य है? उन्हें बदला लेनेकी बात नहीं सोचनी चाहिए। सभी धनका उपदेश यही है कि बुराईका बदला बुराईसे नहीं वरन् भलाईसे देना चाहिए। सभी धर्म यही शिक्षा देते हैं कि सबसे बड़ी विजय स्वयं अपने आपपर विजय पाना है। हिन्दुओंको वही आत्मसंयम प्राप्त करना चाहिए। अब्दुल रशीद एक गरीब प्राणी है; अकेला वही इस जघन्य कृत्यके लिए उत्तरदायी नहीं है। दिल्लीके सारे मुस्लिम समाचारपत्र और वे सब लोग जो स्वामी श्रद्धानन्द, लाला लाजपतराय और पण्डित मदनमोहन मालवीयको इस्लामका शत्रु समझते रहे, उन सबने मिलकर सामूहिक रूपसे हत्यामें योग दिया है। उन चीजोंका परिणाम आपके सामने है। देशके पूरे वाता- वरणको शुद्ध करने की जरूरत है। आपने जो संघर्ष शुरू किया है, उसकी सफलता- के लिए १९२२ के जैसे उत्साहकी जरूरत है लेकिन वह सफलता तबतक नहीं मिल सकती जबतक कि ऐसे शुद्धीकरणको प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। इसलिए हर व्यक्तिको अपना पूरा ध्यान आत्मशुद्धिपर केन्द्रित करना चाहिए। शत्रुओंके प्रति शत्रु-भाव रखना बिलकुल अविवेकका काम है; उनपर तो तरस खाना चाहिए ।

[ अंग्रेजीसे ]

सर्चलाइट, १६-१-१९२७