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टिप्पणी

स्वतन्त्र राष्ट्रोंका स्वेच्छापर आधारित सहयोग । इंग्लैंड और दूसरे उपनिवेशोंका सहयोग समानताकी शर्तपर पारस्परिक लाभके लिए है। हिन्दुस्तान अन्तमें कौनसा स्वराज्य लेगा, इसका निश्चय तो केवल वही कर सकता है। कांग्रेसके मौजूदा ध्येयके अनुसार ब्रिटिश साम्राज्य या, आप चाहें तो कह सकते हैं कि, ब्रिटिश राष्ट्र- मण्डलके भीतर भी स्वराज्यका विकास सम्भव है। मैंने अकसर स्वराज्यका अर्थ प्रस्तुत किया है, वह यह है कि अगर सम्भव हो तो ब्रिटिश साम्राज्यके भीतर, किन्तु जरूरत पड़े तो उसके बाहर स्वराज्य । मैं तो ऐसा सोचता हूँ कि इससे बेहतर व्याख्या करना असम्भव है । यह राष्ट्रीय स्वाभिमानके सर्वथा अनुकूल है और इसमें राष्ट्रकी अधिकसे-अधिक प्रगतिकी गुंजाइश है।

आखिर, स्वराज्यकी असली परिभाषाका निर्धारण तो हमारे अपने कामों और उद्देश्य प्राप्तिके लिए अपनाये गये हमारे साधनोंसे ही होगा। अगर हम साधनोंपर ही ध्यान रखें तो स्वराज्य तो अपने आप ही मिल जायेगा। इसलिए हमारे सभी प्रयत्न एक ऐसी वस्तुकी परिभाषा करने के बदले जिसकी परिभाषा की ही नहीं जा सकती, उस वस्तुकी प्राप्तिके उपायकी खोजमें लगने चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]


यंग इंडिया, १३-१-१९२७

२४२. टिप्पणी

पनामामें भारतीय

पनामा गणतंत्रकी विधान सभाने अभी हालमें एक प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम पास करके अन्य लोगोंके साथ-साथ ब्रिटिश भारतीयोंके पनामा प्रवेशपर प्रतिबन्ध लगा दिया है। राष्ट्रपति चियारीने एक सुविचारित सन्देशके साथ विधेयकमें काफी संशोधन करने और पुनर्विचार करने की सलाह देते हुए उसे विधानसभाको वापस कर दिया था। लेकिन विधानसभाने उनके सुझाये गये उन्हीं संशोधनोंको स्वीकार किया जिन्हें स्वीकार करना अनिवार्य था; शेष सभीको नामंजूर कर दिया। विधानसभाने अपने देशकी भावी पीढ़ियोंके अधिकारोंकी रक्षा करनेके आधारपर ब्रिटिश भारतीयोंके ऊपर प्रतिबन्ध लगानेको उचित ठहराया । पनामामें इस समय शायद तीससे ज्यादा सिंधी भारतीय व्यापारी नहीं होंगे। ये शौककी चीजोंका व्यापार करते हैं । यह स्वीकार किया गया कि उनकी उपस्थिति पनामाके निवासियोंके लिए कोई खतरा नहीं है। किन्तु यह कानून आगेके लिए ही नहीं है, इसका प्रभाव उन प्रवासियोंपर भी पड़ता है जो कानून बननेसे पहलेसे वहाँ हैं। केवल उन्हीं लोगोंको छूट है जो पिछले दस वर्षोंका लगातार निवास सिद्ध कर सकें। ऐसे लोगोंको छूटका प्रमाणपत्र दिया जायेगा। मेरी समझ में ऐसे प्रवासी बहुत कम ही होंगे जो पनामामें इतनी लम्बी अवधिका लगातार निवास सिद्ध कर सकें। दक्षिण आफ्रिकाका अनुभव देखते हुए कहा जा सकता है कि दूसरे देशोंमें बसे प्रवासी भारतसे इतने वर्षोंतक लगातार बाहर कभी