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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं रहते। मेरी जानमें अब यह मामला विदेश विभागके सामने है। देखना है कि यह विभाग पनामामें रहनेवाले भारतीयोंके, तथा भविष्यमें जीविकाकी खोजमें पनामा जानेका निश्चय करनेवाले भारतीयोंके अधिकारोंकी किस हदतक रक्षा कर पाता है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १३-१-१९२७

२४३. सन्देश : कांग्रेसजनोंको

श्रद्धा रखो। बुद्धि-बलके साथ-साथ चरित्र बलका साधन करो ।

आज, १३-१-१९२७

२४४. भाषण : धनबादमें

१३ जनवरी, १९२७
 

महात्मा गांधोने अभिनन्दनपत्रोंका उत्तर देते हुए नगरपालिका और जिला बोर्डके सदस्योंको अभिनन्दनपत्रोंके लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने नगरपालिकाके सदस्योंको इस बातके लिए विशेष रूपसे धन्यवाद दिया कि उन्होंने साफ तौरसे स्वीकार किया कि उनको नगरपालिकाके क्षेत्रमें खद्दर और चरखेका बहुत प्रचलन नहीं है। उन्होंने कहा कि जब में दक्षिण आफ्रिकामें था, तब भी मैं नगरपालिकाके मामलोंमें बहुत दिल- चस्पी लिया करता था। मैं जानता हूँ कि देशके मामलोंमें नगर मुख्य भूमिका अदा करते हैं और आधुनिक युगमें विश्वके लगभग सभी आन्दोलनोंका सूत्रपात शहरोंसे हुआ है। मैं यह भी जानता हूँ कि शहरी नवयुवकोंमें नागरिक उत्तरदायित्वोंकी भावना जाग्रत करनेकी आवश्यकता है। लेकिन भारतकी अनोखी परिस्थितिमें शहरोंका अधिक- से-अधिक सिर्फ दूसरे दर्जेका महत्व है। असली भारत तो गाँवोंमें रहता है और सात लाख गाँवोंकी तुलनामें शहरोंका महत्त्व बिलकुल कम हो जाता है। भारतमें ग्रामीण जीवनके इस महत्वको नगरपालिकाओंके सदस्योंको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस देशमें शिक्षित लोगोंमें गाँवोंके साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ देने और अपने मनसे उनकी याद मिटा देनेकी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इस प्रवृत्तिको रोकना है। यूरोपमें गाँव हर चीजके लिए शहरोंपर निर्भर करते हैं जो सभी तरहकी गतिविधियोंके केन्द्र होते हैं। लेकिन भारतमें गाँव शहरोंका पोषण करते हैं और इसलिए हर शहरोका यह कर्तव्य है कि वह इस बातका ध्यान रखे कि गाँवोंके स्वस्थ विकास में किसी तरहकी बाधा न पहुँचे। लोगोंको इस बातपर आश्चर्य होता है कि भारतका निर्यात आयातकी अपेक्षा अधिक होनेपर भी भारत इतना गरीब कैसे हो सकता है। उसकी गरीबीका कारण यह है कि दूसरोंकी समृद्धि बढ़ानेके लिए देशसे करोड़ों