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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए घर-घर माँगते फिरेंगे ? खद्दर आपकी मातृभूमिका उपहार है और इसलिए आपके लिए पवित्र वस्तु है। आप अपनी माँसे बेहतर रोटोकी माँग कर सकते हैं, लेकिन जबतक वह तैयार न हो सके तबतक खराब रोटीको ही सन्तोषके साथ खानेके सिवा दूसरा चारा नहीं है। इसी तरहसे आप खद्दरकी किस्म बेहतर बनानेकी कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जबतक बेहतर खद्दर न मिल सके, तबतक जैसा भी खद्दर मिले उसीसे सन्तोष करना होगा, भले ही वह कितना ही खुरदरा हो ।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृतिको प्रमुख विशेषता यही है कि व्यक्ति दुखमें पड़े हुए अन्य मानवोंकी मदद करे। खद्दर पहनकर आप गरीबोंकी सहा- यता करनेका अपना धार्मिक कर्त्तव्य पूरा कर सकते हैं। आपकी 'गीता' आपको सिखाती है कि जो व्यक्ति यज्ञ नहीं करता, वह पाप करता है। चरखा कातना आपके लिए यज्ञ करनेके समान है, और हर घरमें यज्ञवेदीकी तरह चरखा रखा जाना चाहिए। मैं अभी स्थानीय खादी भण्डारसे आ रहा हूँ। मैंने देखा कि उस दूकानमें केवल १००० रुपयेका खद्दर रखा गया है, और वह भी बेचा नहीं जा सका है। मैं नहीं जानता कि झरियामें कितने रुपयोंका विदेशी कपड़ा बेचा गया है, लेकिन मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि विदेशी वस्त्रोंकी बिक्री खद्दरकी बिक्रीकी अपेक्षा कई गुना ज्यादा हुई है । मेरे लिए यह बड़े ही खेदकी बात है कि झरियामें इतनी छोटी-सी खादीकी दुकान भी नहीं चलाई जा सकती है। मैं सबसे अपील करता हूँ कि आप सब लोग खद्दर पहनना अपना नियम बना लें। मेरा अनुरोध है कि आप सब लोग गम्भीरतापूर्वक समस्त विदेशी वस्त्रका बहिष्कार करने, और केवल खादी पहननेका संकल्प करें ।

मजदूरोंसे उन्होंने कहा कि आप नशाबन्दीका पालन करें और सभी तरहके वस्त्रोंको छोड़कर केवल खद्दर पहनें। ऐसा करके आप अपने सैकड़ों ऐसे भूखे भाई- बहनोंको भोजन देनेका काम करेंगे जो रोजीके अभावमें एक पैसा भी नहीं कमा सकते। इसके बाद महात्माजीने अस्पृश्यता और हिन्दू-मुस्लिम तनावपर चर्चा की।

अभिनन्दनपत्रका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि संघका कार्य प्रगति कर रहा है और में संयोजकोंको उनकी सफलताके लिए बधाई देता हूँ। दूसरी बात, अर्थात् पूँजीपतियों और मजदूरोंके सम्बन्धोंके बारेमें उन्होंने आश्वासन दिया कि मेरी सहानुभूति हमेशा गरीब मजदूरोंसे है और मेरा उद्देश्य मालिकों और मजदूरोंमें सहयोग और शान्ति कायम करना है। उन्होंने कहा कि निश्चय ही जमशेदपुरके मजदूरोंके लिए मैंने कुछ किया है, लेकिन यहाँकी स्थानीय परिस्थितियोंसे में पूरी तरह वाकिफ नहीं हूँ | जमशेदपुरमें मजदूर नेताओं में से कुछ मेरे जाने हुए लोग और मेरे मित्र तथा भाई-स्वरूप श्री एन्ड्रयूज भी थे। फिर भी यदि किसी भी समय मेरी मददकी जरूरत पड़ी, तो मैं जो-कुछ थोड़ा बहुत कर सकूँगा, करूंगा। निश्चय ही में ऐसा नहीं मानता कि सभी पूंजीपति बुरे और दमन- कारी हैं, बल्कि इसके विपरीत में बहुत से ऐसे पूँजीपतियोंको जानता हूँ जिनके दिलों में