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भाषण : औरंगाबादकी सार्वजनिक सभामें

मजदूरोंके भलेका खयाल है। महात्माजीने मजदूरोंको सही रास्तेपर चलनेकी सलाह दी और कहा कि मुझे विश्वास है कि अन्तम सत्यकी विजय होगी। उन्होंने फिर एक बार धनके लिए अपील करते हुए अपना भाषण समाप्त किया। '

[ अंग्रेजीसे ]

सर्चलाइट, १९-१-१९२७

२४७. भाषण : औरंगाबादकी सार्वजनिक सभा

१४ जनवरी, १९२७
 

महात्माजीने कहा कि इससे पहले जब मैंने बिहारका दौरा किया था, उस समय मुझे यहाँ आनेका मौका नहीं मिल सका था। इसलिए मुझे खुशी है कि मैं यहाँ आकर आप लोगोंसे मिल सका। मैं आप लोगोंको दूर गाँवोंसे चलकर यहाँ आनेके लिए धन्यवाद देता हूँ। उन्होंने कहा कि मेरे दौरेका उद्देश्य आप लोगोंसे यह अपील करना है कि आप भारतके लिए और अपने लिए कुछ थोड़ा बहुत कार्य करें, और मुझे आशा है कि मुझे आप निराश नहीं करेंगे ।

उन्होंने कहा कि भारत एक गरीब देश है। जो लोग शहरोंने रहते हैं, वे शायद कल्पना भी नहीं कर सकते कि ग्रामीण लोग कितने गरीब हैं; और जो ग्रामीण सभामें आये हैं वे भी यह नहीं जानते कि सुदूर गाँवोंमें ऐसे लोग रह रहे हैं जो उनसे भी ज्यादा गरीब हैं। ये गरीब लोग दुखमय अन्धकारमें रह रहे हैं और किसी तरह अपने कष्टमय अस्तित्वको दुखद अवसानतक ढकेलते हुए ले जा रहे हैं। शहरोंके लोग अपनी जीविकाके लिए उन ग्रामीणोंपर निर्भर हैं जो बदलेमें इन दीन-हीन लोगों से पैसा पाते हैं। वे सारे देशके लिए धन-धान्य पैदा करते हैं जबकि खुद अपना शरीर प्राणमय बनाये रखनेका उनके पास कोई साधन नहीं है। हो कता है कि भारतीय रेलवेके जरिये चन्द सौभाग्यशाली लोगोंको थोड़ा-बहुत धन प्राप्त होता हो, लेकिन धन-धान्यके सच्चे उत्पादकोंको वह उनके आजीविकाके साधनोंसे भी वंचित कर देती है। मैं आपसे ईश्वरके नामपर उन गरीब, दीन और दुखी ग्रामीणोंके लिए अपील करता हूँ, जो वास्तवमें भारतीय समाजकी रीढ़के समान हैं।

आगे बोलते हुए उन्होंने बताया कि विदेशी वस्त्रोंके आयातने किस तरह हमारे देशभाइयोंके दुख और गरीबीको बढ़ानेमें योगदान किया है और यह भी समझाया कि किस तरह उस अमर्यादित आयातकी रोकथामसे देशकी बढ़ती गरीबीपर सफलता-

१. भाषण समाप्त होनेपर गांधीजीको १००१ रु० की थैली भेंट की गई।

२. डाक बंगलेके पासवाले खुले मैदान में हुई इस सभामें लगभग १०,००० लोग उपस्थित थे और इसमें गांधीजीने करीब आधा घंटा भाषण दिया।