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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूर्वक अंकुश लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा, मैंने ऐसे अस्वाभाविक घटना-चक्रोंसे संघर्ष करनेके लिए जो सबसे ज्यादा प्रभावकारी अस्त्र खोजा है, वह चरखा है और मैं आप लोगोंसे उसे अपनाने की सिफारिश करने आया हूँ। मुझे विश्वास है कि यदि आप लोग सफलतापूर्वक विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार कर सकें और सिर्फ खद्दर ही पहनने लगें, तो आप अपने लक्ष्य अर्थात् स्वराज्यकी ओर काफी हदतक बढ़ सकेंगे। लेकिन अगर खद्दरका राजनीतिक महत्त्व न भी माना जाये तो भी दूसरे अन्य आधार हैं जिनसे खद्दरका समर्थन होता है। यदि खद्दरको राजनीतिक अस्त्रकी तरह काममें न भी लाया जाये, तो भी आप अपने हजारों गरीब देशभाइयोंकी मददके खधालसे उसे इस्तेमाल कर सकते हैं। चरखा आपको अन्नपूर्णा है क्योंकि उसमें असंख्य गरीब लोगोंको भोजन-पानी देनेकी सामर्थ्य है। यह तो संसारमें सभी मानते हैं कि हमारे देशवासी गरीब हैं, यहाँतक कि अंग्रेज इतिहासकारोंने भी अपनी पुस्तकों- में इस तथ्यको प्रमाणित किया है कि भारतमें हजारों लोग ऐसे हैं जो यह जानते ही नहीं कि दो जून रोटी खाना कैसा होता है। मैंने खुद अपनी आँखोंसे उड़ीसा में वह सब देखा है जो अबतक केवल किताबों में पढ़ता रहा हूँ। उड़ीसामें लोग इतने गरीब हैं कि सचमुच उनके पास जीवन निर्वाहका कोई उपाय नहीं है। क्या उनकी सहायता करता आपका कर्त्तव्य नहीं है? यदि आप किसी और तरहसे उनकी मदद नहीं कर सकते हैं तो आप खादी पहनकर तो कर ही सकते हैं। खादीका कार्य हिन्दू और मुसलमान कर सकते हैं, स्त्री और पुरुष, बच्चे और बूढ़े, बंगाली और पंजाबी सभी कर सकते हैं, सभी इस कार्यमें शामिल हो सकते हैं और इसकी सफलतामें यथासम्भव शक्तिभर अपना योग दे सकते हैं। सरकारी कर्मचारियोंपर भी खादी पह- ननेके सम्बन्ध में कोई रोकटोक नहीं है। आधुनिक औद्योगिकवादके शोर-शराबेसे दूर स्थित गाँवोंके शान्तिमय वातावरण में हमारे ही भाई-बहनों द्वारा तैयार की गई खादी हमारी सहानुभूति और प्रोत्साहन पानेकी अधिकारिणी है। खादीका सम्बन्ध हमारे अतीत कालको स्मृतियोंसे जुड़ा हुआ होने के कारण वह पुनीत है और हर किस्म के दूसरे कपड़ोंकी अपेक्षा उसे ही पहनना आपका धार्मिक कर्त्तव्य है।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी वस्त्रोंपर खर्चा गया पैसा मैनचेस्टर और लंकाशायरके बुनकरोंकी जेबमें जाता है, जबकि भारतीय मिलोंके कपड़ेपर खर्चा गया पैसा अहमदाबादके व्यापारियोंकी पहले ही से खचाखच भरी तिजोरियोंको ही और भरता है। मुझे यह सोचकर दुःख होता है कि भारतमें अच्छे और कुशल वस्त्र- उत्पादकोंके होनेके बावजूद भी भारतीयोंको विदेशी उत्पादकोंको इतना पैसा चुकाना पड़ता है। ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने शासनके प्रथम दौर में आपके वस्त्र उद्योगको मिटानेके लिए शायद जिम्मेदार रही हो । उसने आपके वस्त्र-उद्योगको अपनी हिंसात्मक कार्र- वाईसे या अपने अवांछनीय तरीकोंके जरिये सम्भवतः ठप्प किया हो । लेकिन, में पूछता हूँ, अबतक उन हालातों को जारी रखनेके लिए कौन जिम्मेदार हैं ? यदि आप