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भाषण : औरंगाबादकी सार्वजनिक सभामें

अब भी खद्दर अपनाना शुरू कर दें तो भारतीय वस्त्र फिरसे दुनिया के लिए दर्शनीय चीज बन सकता है। आपको 'प्रायश्चित्त' के रूपमें सूत कातना और खद्दर पहनना शुरू करना चाहिए। धनवान लोगोंको भी पैसेके लिए नहीं, वरन् गाँवोंके श्रद्धालु और अपना अनुकरण करनेवाले लोगोंके सामने उदाहरण प्रस्तुत करनेके लिए सूत कातना शुरू करना चाहिए। हिन्दू धर्म हर व्यक्तिको यज्ञ करनेका सख्तीसे आदेश देता है। यज्ञ वह है जो किसी एक व्यक्ति द्वारा अपने हितके लिए नहीं किया जाता वरन् दूसरे लोगोंके हितके लिए किया जाता है। भारतकी वर्तमान परिस्थितियोंमें गरीब ग्रामवासियोंके लिए सूत कातनेसे बढ़कर अधिक हितकारी कोई दूसरा काम नहीं हो सकता है और इसलिए भारतीयोंके लिए सबसे अच्छा यज्ञ सूत कातना है, जिसे सभी व्यक्ति कर सकते हैं ।

आगे बोलते हुए महात्मा कहा कि सिर्फ बिहारमें हमने २९,००० रु० सूत कातनेवालों और ३६,००० रु० बुनकरोंमें वितरित किये हैं। मुझे लगता है कि बिहारके लोगोंको खद्दरसे स्नेह है, लेकिन अगर उन सबने खादी अपनाई होती तो शायद हम बिहारके गरीब निवासियोंको और भी ज्यादा पैसा दे सकते। लगभग १०० साल पहले पटना में बहुत अच्छी खादी तैयार की जाती थी जो विदेशोंको निर्यात की जाती थी और विदेशोंके लोग उसे एक शान-शौकतकी चीजके रूपमें इस्तेमाल करते थे । अब चक्र उलटा हो गया है और भारत विदेशोंको अच्छे कपड़ेका निर्यात करनेके बजाय करोड़ों रुपयोंके आयातित कपड़ेकी खपत करता है और भारतके लोग सुन्दर विदेशी कपड़ा पहननमें गर्वका अनुभव करते हैं। बिहारके निवासियोंकी हैसियतसे आपको याद करना चाहिए कि अतीतकालम वस्त्र उद्योगने पटनामें कितनी उन्नति की थी। उन्हीं पुराने अच्छे दिनोंको वापस लाना आपका कर्त्तव्य है। आप हर-सम्भव तरीकेसे खद्दरको अपनाकर ऐसा कर सकते हैं। खद्दरने काफी प्रगति की है; महीन अच्छी खादी अब सुलभ है और १९२१ की तुलनामें उसका मूल्य भी काफी कम हो गया है। अगर लोग काफी संख्या में खद्दरके प्रति दिलचस्पी दिखायें तो खद्दरको और भी सस्ता बना सकते हैं ।

इसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय चरखा-संघके लिए चंदेकी अपील की और आगे बोलते हुए उन्होंने अस्पृश्यताकी समस्या तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता की समस्या- पर चर्चा की।

उन्होंने कहा कि स्वराज्य सदैव मेरे जीवनका स्वप्न रहा है और १९२०-२१ वह करीब-करीब मिल ही गया था। असली शुद्धि-कार्य अर्थात् आत्मशुद्धिकी प्रक्रिया उस समय शुरू हो गई थी। देशमें एक उत्साहकी लहर दौड़ गई थी और इसीलिए हम अपने लक्ष्यके लगभग बिलकुल करीब पहुँच गये थे । वही अध्याय हमें फिरसे दोहराना है, लेकिन जबतक आपसकी अनबन और मतभेद हमें बुरी तरह एक दूसरेसे अलग किये हुए हैं, वैसा नहीं किया जा सकता।

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