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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही चम्पारनमें मैंने झाड़ लगाई है। मैं पश्चिमी सभ्यताका प्रेमी नहीं हूँ; बल्कि भारतके प्रधान हितोंको चोट पहुँचानेवाले सभी पश्चिमी प्रभावोंका में विरोध ही करूंगा, लेकिन पश्चिमी संस्कृतिमें जो कुछ अच्छा है उसका में स्वागत करूंगा। नगर-प्रशासनके मामले में हमें पश्चिमके लोगोंसे बहुत कुछ सीखना है। ग्लासगो और बरमिंघम भी पहले गयाकी तरह ही गन्दे शहर थे, शायद इससे भी ज्यादा गन्दे थे। लेकिन उन नगरोंके प्रशासकोंने जिस तरह अपने शहरोंकी दशा सुधारी वह भारतकी नगर- पालिकाओंके सदस्योंके लिए अनुकरणीय है। मैं आशा करता हूँ कि गयाकी नगरपालिका इस नगरकी दशा सुधारनेके लिए तुरन्त कार्रवाई करेगी।

भाषण जारी रखते हुए महात्माजीने कहा, मुझे दुःख है कि नगरपालिकाके अध्यक्षने मुझे सवेरे यह नहीं बताया कि उनके अन्य सहयोगी उनसे दो मुद्दोंपर सहमत नहीं हैं, अर्थात् खद्दर और अस्पृश्यताके सवालपर। ऐसी हालतमें मैं उन्हें इन दो मुद्दोंपर राजी करनेके लिए कुछ वक्त दूंगा | यदि आप अपने और गाँववालोंके बीच सम्पर्ककी एक कड़ी कायम कर देना चाहते हैं तो खद्दरकी उपेक्षा नहीं कर सकते। जहाँतक अस्पृश्यताका सवाल है, स्वामी श्रद्धानन्दकी मृत्युके बाद में नहीं समझता कि इस विषयपर बहस करनेकी कोई जरूरत है। मैं एक सनातनी हिन्दू हूँ, लेकिन हिन्दू शास्त्रों में मुझे ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो अस्पृश्यताके वर्तमान स्वरूपका समर्थन करती हो । यदि अस्पृश्यताका निवारण नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दू समाज खतम हो जायेगा । संसारमें केवल तीन ही प्रमुख धर्म हैं, ईसाई धर्म, इस्लाम और हिन्दू धर्म । जैसी कि हिन्दू महासभाने हिन्दू-धर्मकी व्याख्या की है, मैं बुद्ध धर्म और सिख धर्मको हिन्दू धर्मकी ही शाखा मानता हूँ। लेकिन शक्तिशाली हिन्दू समाज तेजीसे छिन्न-भिन्न हो रहा है। ईसाई और इस्लाम जगत, वस्तुतः सारा अहिन्दू जगत हिन्दू समाजकी गतिविधियोंको गौरसे देख रहा है। यदि आप हिन्दुओंके रूपमें अपने अस्तित्वका औचित्य सिद्ध करना चाहते हैं और पुराने गौरवकी फिरसे प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, तो आपका स्पष्ट कर्तव्य है कि आप हिन्दू धर्म अस्पृश्यता रूपी कलंक मिटा डालें।

आज सुबह मुझे श्री एन्ड्रयूजका भेजा एक तार मिला है। अगर आप तथाकथित अस्पृश्योंको इसी प्रकार आतंकित करते रहेंगे तो आप दक्षिण आफ्रिकामें गोरोंके हाथ उचित व्यवहार पानेको आशा कैसे रख सकते हैं। श्रीयुत गोखलेने अपने एक भाषण में ठीक ही कहा था कि भारतीय लोग जब अपने ही कुछ वर्गोंके साथ इतना अमान- वीय व्यवहार करते हैं तब यह ठीक ही है कि गोरे लोग भारतीयोंको नीची निगाहसे देखते हैं। जबतक अस्पृश्यता निवारण नहीं हो जाता और खद्दर आन्दोलनको सफल नहीं बनाया जाता तबतक हमारे सारे काम अधूरे ही रहेंगे।

आगे बोलते हुए उन्होंने, जिला बोर्डको खादीका काम हाथमें उठानेके लिए धन्यवाद दिया। किन्तु साथ ही यह भी कहा कि मुझे इस बातका दुःख है कि स्कूली