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भाषण : रमनाकी सार्वजनिक सभामें

करके) पवित्र बनाने का दुस्साहस कैसे कर सकता है ? लेकिन यह तो मेरी अपनी राय है। और चूँकि मैं स्वतन्त्रताका पुजारी हूँ, मैंने अपनी इस रायके बावजूद भी इस बातका आग्रह रखा है कि श्रद्धानन्दजीको वैदिक धर्मके प्रचारका उतना ही हक था जितना कि मुसलमानोंको 'कुरान' के प्रचारका । और यदि श्रद्धानन्दजीकी उनके शुद्धि- कार्यके लिए हत्या कर दी गई, तो इसमें इस्लामका कोई यश नहीं है। हिन्दूधर्मको उनके बलिदानपर गर्व है और वह उस बलिदानसे और समृद्ध बना है। कोई मुसल- मान उस हत्याका गुप्त रूपसे समर्थन न करे और न ऐसा ही समझे कि इससे इस्लामका कुछ भला हुआ है। एक भी हिन्दूको बदलेकी भावना दिलमें नहीं लानी चाहिए। यदि हिन्दू-मुसलमान परस्पर अविश्वास और भयकी भावनासे मुक्त हो जायें तो कोई भी ताकत उनको आजाद होनेसे रोक नहीं सकती। हम खुद अपने कर्मोंसे गुलाम बने हैं। इस ज्वलंत चर्चाके विषयपर मैंने अबतक अपना मुँह बन्द रखा है। श्रद्धानन्दजीके बलिदानने मुझे कुछ हदतक अपना मुँह खोलनेको मजबूर कर दिया है। लेकिन ऐसे वातावरणमें मैं कोई दिशा-निर्देश नहीं दे सकता। मैं तो केवल ईश्वरसे ही प्रार्थना करूंगा कि वह हमें भय, घृणा और अविश्वाससे मुक्त करे और हम केवल प्रेमकी शक्तिपर ही भरोसा करना सीखें।

गोरक्षाकी चर्चा करते हुए महात्माजीने कहा कि यह तो ऐसा विषय है जिस- पर कोई विवाद नहीं है और मुझे खुशी है कि आप लोग गोरक्षाका काम कर रहे हैं। भारतमें गायोंकी मौजूदा हालतके लिए हिन्दू खुद जिम्मेदार हैं। अगर वे अपनी गायें पैसोंकी खातिर कसाइयोंके हाथ न बेचें, अगर वे अपनी दुधारू गायोंकी उचित देखभाल करें तो उनकी हालत इतनी शोचनीय नहीं हो सकती। मैंने सुना है कि गया में एक गोशाला है। भारतमें ऐसी अनेक गोशालाएँ हैं। यदि उनको ठीकसे चलाया जाये तो दूध तथा दूधसे बने पदार्थों और मृत गायोंके चमड़ेसे होनेवाली आमदनीसे बूढ़ी और मरियल गायोंका पालन किया जा सकता है । चमड़ा कमानेवाले कारखाने स्थापित करके मरी गायकी खालसे पैसे कमाये जा सकते हैं ।

भाषण जारी रखते हुए महात्माजीने लोगोंसे अपील की कि वे सदा केवल खादी पहनें और इस प्रकार गरीब गाँववालोंकी मदद करें। उन्होंने कहा, चरखा आपकी कामधेनु है, उसमें हजारों गरीब और भूखे मर रहे गाँववासियोंको भोजन देनेकी शक्ति है। मुझे खेद है कि गया-जैसे शहरमें एक छोटी-सी खद्दरको दुकान भी नहीं चलाई जा सकती। विदेशी वस्त्रोंसे भरी बड़ी-बड़ी दुकानोंके बीच एक छोटी-सी खद्दरकी दुकान देखकर मुझे दुःख होता है। मैं वह दिन देखनेको लालायित हूँ जब बाजारमें सभी बड़ी दुकानोंमें खादीका माल भरा होगा, जब केवल एक या दो छोटी दुकानों में ही विदेशी कपड़ा या भारतीय मिलोंका बना कपड़ा रह जायेगा और वे दो-एक दुकानें भी ठीकसे न चल रही होंगी।

१. इसके बादके अनुच्छेद सर्चलाइटको रिपोर्टसे लिये गये हैं।