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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१. पागल कुत्तेके काटने से होनेवाला रोग निमित्तमात्र है।

२. इस रोगके निवारणके लिए सरकार प्रयत्न करे अथवा नगरपालिका, लेकिन यह प्रयत्न एक ही दृष्टिसे होगा। यदि महाजनमें सचमुच अहिंसाकी भावना हो तो वह ही इसका सही उपाय ढूंढ़ सकती है। कुत्तोंको न मारनेके धर्मको सरकार स्वीकार नहीं करेगी। नगरपालिकामें भी अनेक सम्प्रदायोंके लोग होते हैं इससे वे भी इसका अहिंसक उपाय नहीं ढूंढेंगे।

३. अहिंसक उपाय खोज निकालनेका बोझ महाजनपर ही है। महाजनको निर्दोष अथवा निरुपाय मानना भूल है।

४. इस चर्चा के लिए पागल कुत्ते और खूनी मनुष्यमें में कोई भेद नहीं देखता। खून करनेकी प्रवृत्ति भी एक रोग है। खूनी अपना आपा खो बैठता है तभी खून करता है। दोनों दयाके पात्र हैं लेकिन यदि वे दूसरोंको कष्ट पहुँचाते दिखाई दें और उन्हें देहमुक्त करना उचित हो तो वैसा करके भी उन्हें रोकनेका धर्म उत्पन्न होता है। यह धर्म अहिंसक व्यक्तिके लिए तो और भी जरूरी है।

५. कुत्तोंको घर-घर पाला जाना चाहिए, मेरे कहनेका ऐसा आशय ही नहीं है। मैं इतना ही कहता हूँ कि यदि कुत्ते रखने ही हों तो वे पालतू होने चाहिए। पालतू कुत्तोंको रोग नहीं होता, ऐसा नहीं, लेकिन पालतू कुत्तेके लिए उसका स्वामी जवाबदेह होगा।

६. आज गलियोंमें घूमनेवाले लावारिस कुत्ते सीधे-सादे नहीं हैं; कभी थे भी नहीं । पालतू कुत्ते वैसे होते हैं । वे सीधे-सादे रहें इसलिए ही यह चर्चा चल रही है।

७. आवारा कुत्तोंको देखते ही मार दिया जाये, ऐसा विचार मैंने व्यक्त नहीं किया है लेकिन मैंने ऐसे कानूनका सुझाव दिया है। इसमें कुत्तेके प्रति दयाभाव निहित है। क्योंकि इससे दयालु मनुष्य अपना धर्म समझकर या तो कुत्तोंको पालेंगे या दूसरा कोई उपाय ढूँढ़ निकालेंगे और ऐसे कानून बननेपर कुत्तोंका यों ही मारे- मारे फिरना बन्द हो जायेगा। भिखारीको भिक्षा न देनेका उद्देश्य भिखारीको मारना नहीं है; उसका उद्देश्य उसे स्वावलम्बी बनाना, मनुष्य बनाना है। कुत्तोंको मारनेका धर्म तो मैंने पिछले अंकोंमें जो परिस्थितियाँ बताई हैं, उन्हींमें उत्पन्न हो सकता है। कुत्तोंका मारना पाप है, ऐसा कहने में मेरे मतका खण्डन नहीं है क्योंकि मैंने उसके विरुद्ध मत व्यक्त ही नहीं किया है।

८. अम्बालाल सेठने क्या किया और जो किया वह उचित है अथवा नहीं, तथा मैंने जो मत व्यक्त किया है वह उचित था या नहीं, इसकी चर्चा करना व्यर्थ है। हमारे पास उस घटनाके सारे तथ्य भी नहीं हैं। उससे उत्पन्न होनेवाली अहिंसाकी महान् समस्या ही चर्चा करने योग्य है और भाई अम्बालालकी बात छेड़ना मैं उस समस्याके समाधानमें विघ्न रूप मानता हूँ।

९. सवाल इतना ही है कि अमुक परिस्थितियोंमें जब अन्य सब उपाय व्यर्थ सिद्ध हो जायें तब कुत्तोंको मारना अहिंसाकी दृष्टिसे धर्म हो सकता है या नहीं?

१.जातीय पंचायत।