३६. पत्र : जमनालाल बजाजको
सोमवार [१५ नवम्बर, १९२६][१]
तुम्हारे पत्र मिलते रहते
कमलाकी तबीयत और उसका मन दोनों ही फिलहाल तो ठीक हैं। खास तौरसे चरखा संघकी सभाके लिए आनेकी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन वहाँ आराम मिले तो ठीक अन्यथा किसी दूसरी जगह भाग जाना चाहिए।
मैंने तार पढ़ लिये हैं। तुमने जो उत्तर दिये हैं मुझे तो वे सब उचित मालूम हुए।
भणसालीके उपवासके आज ४० दिन पूरे हो जायेंगे। कल सबेरे उपवास तोड़ेगा। शक्ति बहुत ही अच्छी रही है। उसने किसीसे तनिक भी सेवा नहीं ली।
२ दिसम्बरको यहाँसे निकलूंगा,[२] ऐसी उम्मीद है। कौन-कौन साथ होगा यह अभी निश्चय नहीं हुआ।
देवदास मथुरादासके लिए पंचगनी गया है। प्यारेलालको अपनी बहनके लिए पंजाब जाना पड़ा।
सोनीरामजीको ऑपरेशनकी जरूरत थी और रंगूनके अलावा अन्य किसी स्थानपर ऑपरेशन करवानेके लिए उनकी माताजी आदि तैयार न थीं।
चम्पा बहन यहीं हैं। उन्हें अभी कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र ( जी० एन० २८७७) की फोटो - नकलसे।
३७. पत्र : लालन पण्डितको
आश्रम
१५ नवम्बर, १९२६
मेरी भाषामें हिंसा हो तो मुझे इसका ज्ञान नहीं है। पाखण्डीको पाखण्डी कहने में हिंसा नहीं है लेकिन न कहने में हो सकती है। साँपको क्या कहें? अपने पुत्रके आवारा होनेके बावजूद यदि में उसके परिचयमें अन्य विशेषणोंका प्रयोग करूँ तो असत्यके दोषका भागी होऊँगा; और मेरी नम्र राय है कि असत्य मात्र हिंसा है।