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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिंसा आवारा आदमीको निकम्मा कहने में नहीं, उसके खिलाफ उसीकी तरह निकम्मा बन जानेमें है। में 'बम्बई समाचार' नहीं पढ़ता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

भाई लालन पण्डित

मार्फत सेठ छोटालाल मलूकचन्द
हठीभाईनी बहारनी वाडी

अहमदाबाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९६२) की माइक्रोफिल्मसे।

३८. पत्र : देवचन्द पारेखको

[ १५ नवम्बर, १९२६][१]

भाईश्री देवचन्दभाई,

भाई फूलचन्दने[२] तुमपर दया की, यह ठीक ही हुआ। लेकिन में तो नहीं नकल करवाकर भेजूँ? इसलिए अभी तो तुम्हें मेरी ही लिखावट पढ़नी होगी; इसके बिना गति नहीं है।

तुम्हारा पत्र आज ही मिला। इसलिए पोरबन्दर तार दिया है कि मार्चकी तारीखें मुझे अनुकूल पड़ेंगी।

मालवीयजीको परिषद् में[३] खींच लाना सम्भव नहीं दिखता। इसके सिवा वे खद्दर परिषद्[४] में क्या बोलेंगे? मेरी दृष्टि तो अभी जयसुखलाल मेहता अथवा वल्लभभाई पटेलपर जाती है। लोग यदि कामसे आकर्षित होकर आयें तो अच्छी बात है, महज नामके कारण आयेंगे तो वे क्या देंगे?

तथापि ये सब मेरे अपने विचार हैं, इन्हें ऐसा ही समझना। सही निर्णय तो वही होगा जो तुम सब लोग तय करोगे। मैं यहाँसे २ दिसम्बरको रवाना हो जाऊँगा। इसके बाद वापस कब आऊँगा सो तो राम जाने। ठीक परिषद् के समय ही आऊँ तो आश्चर्य नहीं। इसलिए मुझसे जो काम लेना हो वह इसी मासमें ले लेना।

भाई फूलचन्दसे कहना, उनके पत्रपर जब वह यहाँ आयेंगे तब विचार करेंगे।

बापू

  1. डाककी मुहरसे।
  2. फूलचन्द कस्तूरचन्द शाह।
  3. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्के अधिवेशनमें।
  4. यह काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् के साथ उसी स्थानपर होनेवाली थी; देखिए खण्ड ३१, पृष्ठ ५५६।