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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेखकोंने निम्नलिखित मुद्दोंपर मुख्य रूपसे विचार किया है:

क्या भारतमें करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें एक पूरक धंधेकी जरूरत है, और जिनमें से अधिकांश सालमें कमसे कम चार महीने ऐसे धंधेके अभाव में निठल्ले रहते हैं? क्या हाथकताई ही एकमात्र ऐसा पूरक धंधा है; और यदि है तो क्या लोग आसानीसे इस धंधेको अपना सकते हैं? क्या हाथकते सूतसे बुनकर तैयार किया गया खद्दर विदेशी तथा भारतीय मिलोंके बने कपड़ोंके मुकाबले में बेचा जा सकता है? पाठक देखेंगे कि लेखकोंने इन सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोंका जवाब हाँमें देनेका प्रयास किया है। क्या ऐसे प्रत्येक व्यक्तिका, जो भारतीय जनताकी हालतको बेहतर देखना चाहता है, यह कर्त्तव्य नहीं हो जाता कि वह इन लेखकोंने जो विचार व्यक्त किये हैं, उनको गौरसे पढ़े और यदि उनके निष्कर्षोसे सहमत हो तो खद्दर आन्दोलन का समर्थन करे? इन लेखकों द्वारा निरूपित तथ्योंका खण्डन करनेमें समर्थ हुए बिना इस प्रबन्धको व्यर्थका प्रयत्न कहकर तिरस्कृत नहीं किया जा सकता।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
हैंड स्पिनिंग एण्ड हैंड वीविंग

४१. पत्र : एन० एस० वरदाचारीको

आश्रम साबरमती
१६ नवम्बर, १९२६

प्रिय वरदाचारी,

यह रही भूमिका[१]। आशा है, यह समय रहते मिल सकी है। यदि आपको इसमें कुछ सुधारका सुझाव देना हो तो संकोच न कीजिएगा। आप खुद अपनी भूमिका लिख सकते हैं और उसे प्राक्कथन कह सकते हैं, या फिर यदि आप चाहें तो अपने लेखको भूमिका और मेरे इस लेखको प्राक्कथन कह सकते हैं। यह तो आप देख ही लेंगे कि प्रबन्धमें कोई त्रुटि नहीं बच रहती।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२४६ ) से।

  1. देखिए पिछला शीर्षक।