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४४. पत्र : मुन्नालाल गं० शाहको

कार्तिक सुदी ११ [१६ नवम्बर, १९२६][१]

भाई श्री मुन्नालाल,

आपका पत्र मिला। जो ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रहका पालन करने का प्रयत्न करे, अस्पृश्यताको पाप समझे, शरीर-श्रम करते हुए न थके, पाखाना साफ करना धर्म समझे, स्वादेन्द्रियपर विजय प्राप्त करे, नित्य काते तथा पींजे और शुद्ध खादी पहने, वह आश्रममें रह सकता है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री मुन्नालाल गंगादास शाह
बुरहानपुर

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९६४) की माइक्रोफिल्मसे।

४५. महाकविकी[२] वाटिकाके पुष्प

स्वर्गीय व्योमेशचन्द्र बनर्जीकी सुपुत्री श्रीमती ब्लेयरने मुझे नीचे लिखा अनुवाद भेजा है। यह अनुवाद उनके लिए महाकविकी भतीजी प्रमथा चौधरीने विशेष रूपसे किया है। श्रीमती ब्लेयर कहती हैं:

मुझे अपने दैनिक व्यवहारके लिए कुछ ऐसी सहायक कहावतोंकी जरूरत थी जैसी अंग्रेजीमें हर किसीको मिल सकती हैं। ये उद्धरण उन्होंने मेरे लिए बंगलायें लिखे थे और उनका चुनाव महाकविके शान्तिनिकेतनमें समय-समयपर दिये गये भाषणों में से किया गया था। ये भाषण जिस समय दिये गये उसी समय लिख लिये गये थे, किन्तु मेरा खयाल है कि ये कहीं छपे नहीं हैं। मुझे ये उद्धरण इतने अच्छे लगे हैं कि मैंने उनका अनुवाद अंग्रेजीमें करवा लिया है।

मुझे विश्वास है कि महाकविकी वाटिकाके इन पुष्पोंको 'यंग इंडिया' के पाठक सँजोकर रखना चाहेंगे।[३]

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-११-१९२६
  1. डाककी मुहरमें तारीख १८ नवम्बर, १९२६ है। लेकिन कार्तिक सुदी ११, १६ नवम्बरको पड़ी थी।
  2. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।
  3. इनका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उद्धरणोंके लिए देखिए हमारा अंग्रेजी खण्ड ३२, शीर्षक "फ्लावर्स फ्रॉम द पोएट्स गार्डन"।