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४६. चरखेसे मरणासन्न व्यक्तिको सान्त्वना

एक कथा है कि एक वीर बौद्ध महिला अपने मरणासन्न पतिको इन शब्दों में सान्त्वना देती है: आप अपने मनसे समस्त सांसारिक दुश्चिन्ताएँ निकाल दें और शान्तिपूर्वक प्राण त्याग करें; क्योंकि मैं चरखा चलाना जानती हूँ, इससे मैं अपना और अपने बच्चोंका निर्वाह कर लूंगी। 'यंग इंडिया' में इस कथाके दो रूप दिये गये हैं। पहला सन् १९२१ में छपा था और दूसरा इसी वर्ष। किन्तु इन दोनोंमें अशुद्धियाँ या अपूर्णताएँ थीं। पालीमें मूल कथा देखने के बाद बौद्ध-धर्म अंगुत्तर निकायके चक्कमपट्ट (सारणीय वग्ग) के १६ वें खण्डके पहले अनुच्छेद और दूसरे अनुच्छेदके एक अंशका अनुवाद नीचे दिया जा रहा है।

गृहपति नकुल-पिता भयंकर रूपसे बीमार और अत्यधिक चिन्तित थे। तब उनकी पत्नी नकुल- माताने उनसे कहा 'आपको अब एक क्षणके लिए भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मस्तिष्कपर चिन्ताओंका भार लेकर मृत्युको प्राप्त होना अत्यन्त ही पीड़ाजनक होता है; और भगवान् बुद्धने इस प्रकारको मृत्युको निन्द्य बताया है। कदाचित् आपको यह भय है कि आपके मरनेके बाद में बच्चोंका पेट नहीं पाल सकूंगी और गृहस्थी नहीं चला पाऊँगी। आपका यह भय निराधार है क्योंकि में चरखा चलानेमें और केश सज्जामें निपुण हूँ। (वाक्यके अन्तिम अंशका अर्थ मेरी समझमें स्पष्टतः नहीं आया है। मेरी इच्छा है कि पालीके कोई विद्वान इसपर और प्रकाश डालें। — वा० गो० दे०) इसलिए मुझे आपके बाद अपना और बच्चोंका भरण-पोषण करनमें कोई कठिनाई न होगी। अतः आप कृपया अपने मस्तिष्कसे समस्त क्षोभजनक विचार निकाल दें।

इसके अतिरिक्त कदाचित् आपको ऐसी आशंका है कि आपकी मृत्युके बाद में सम्भवतः दूसरा विवाह कर लूंगी, किन्तु आपको इस तरहका भय अपने मनसे निकाल देना चाहिए। आप देखते ही हैं कि हम पिछले सोलह सालसे विवाहित होनेपर भी संयमपूर्वक जीवन बिता रहे हैं और गृहस्थी चला रहे हैं। आप कृपा करके अपने मनको पूर्णतया शान्त रखें।

इस टिप्पणीमें से मैंने मूल पाठ निकाल दिया है क्योंकि मैं नहीं समझता 'यंग 'इंडिया' के पाठकोंके लिए मूल संस्कृत या पाली पाठकी कोई जरूरत है। किन्तु वा० गो दे० ने मूल पाठके नीचे जो टिप्पणी दी है उसे मैं नहीं छोड़ सकता।

अफसोस कि पालीके सारे मूल ग्रन्थ लैटिन लिपिमें प्रकाशित किये गये हैं। और 'जातक' के सम्पादक, डेनमार्क-वासी कोपेनहेगनके फॉसबालने तो बड़े दम्भसे लिखा है: