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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

"मैं अबतक प्राच्य ग्रन्थोंको लैटिन लिपिमें लिखता रहा हूँ और आगे भी मैं पालीके जिन ग्रन्थोंका प्रकाशन करूँगा उनमें यही क्रम जारी रखूंगा, क्योंकि मेरा विश्वास है कि जिन भाषाओंका अपना कोई साहित्य नहीं है। या जिनका साहित्य तो है, किन्तु वह अबतक अप्रकाशित है, ऐसी सभी भाषाएँ सुन्दर लैटिन लिपिमें ही लिखी जानी चाहिए। इतना ही नहीं, बल्कि एक दिन जब अमेरिका और यूरोपको सभ्यता दूसरी समस्त सभ्यताओंको इस प्रकार आच्छादित कर लेगी, जैसे लावेने हरक्यूलिनियन और पाम्पेईको कर लिया था, तब संसार भर में यही एक लिपि सर्वोपरि हो जायेगी। "पता नहीं 'पाली टेक्स्ट सोसाइटी' के बौद्ध-संरक्षकोंको भविष्यका यह कल्पना-चित्र कहाँतक पसन्द आयेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-११-१९२६

४७. राजाओं और रानियोंकी कलाएँ

चरखा देशकी जो सेवा कर रहा है, उसका व्यक्तिगत अनुभव रखनेवाले एक सज्जनने रस्किनकी 'सीसेम ऐंड लिलीज' पुस्तिकामें से यह एक उद्धरण मेरे पास भेजा है:

कलाओंके राजा कृषिके बाद अब लीजिए आदमीकी दूसरी शीर्षस्थ कला, बुनाईको। यह रानियोंकी कला है। प्राचीन कालमें गैर-ईसाई जातियोंकी सभी कुलीन महिलाओंने अपनी चिर कुमारी देवी (एथेना) की उपासना के रूपमें इस कलाको प्रतिष्ठित किया; और समस्त यहूदी महिलाओंने उसे अपने प्रधान पुरोहितके शब्दोंके अनुरूप ऊँचा उठाया है। उनके प्रधान पुरोहित द्वारा इस देवीका चित्र इन शब्दोंमें प्रस्तुत किया गया है: 'उसके हाथ चरखके हत्थेपर रखे हुए हैं; उसके हाथ ऊनकी लपेटनी थामे हैं; उसके हाथ दीन-हीनोंकी ओर दानकी मुद्रामें खुले हैं। उसे अपने परिवारके लोगोंको हिम-शीतसे बचानेकी चिन्ता नहीं सताती, क्योंकि परिवारके सभी लोग उत्तमोत्तम वस्त्रोंसे सज्जित हैं। गृह सज्जा के लिए आवश्यक शोभा वस्त्र वह स्वयं तैयार करती है; उसके वस्त्र रेशमी-रंगीन होते हैं; वह अत्युत्तम क्षौम-वस्त्र बनाती और बेचती है। व्यापारीके पास जो कटि-पट्ट हैं, वे उसीके दिये हुए हैं।' यूनानी कुमारियों और ईसाई महिलाओं की इस वैभवपूर्ण कलाका इतने हजार वर्षोंमें हमने कौन-सा उत्कर्ष किया है? क्या हम छः हजार वर्षोंतक बुनाई होते रहनेके बाद भी बुनना सीख पाये हैं? क्या हमारे घरोंकी सभी अनावृत दीवारें शोभा वस्त्रोंके राजसी