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बने रह सकते हैं और अपना नाम स्वयंसेवकोंमें लिखा सकते हैं। वे अपने कार्यकी रिपोर्ट समय-समयपर भेजते रहें और कहे जानेपर जो सेवा कर सकें, उसके लिए तैयार रहें।

मद्य-निषेध सम्बन्धी सुधार

पिछले कुछ दिनोंसे त्रावणकोरके कुछ ईसाई सज्जन शराब पीनेके आदी लोगोंमें काम करके शराबखोरीकी उनकी आदतको लगनके साथ छुड़ानेका प्रयत्न कर रहे हैं; याने वे उनसे मिलते हैं और समझाते हैं। शराबखानोंमें जानेवाले लोगोंको चेतानेके उद्देश्य से वे धरनेका आयोजन भी करना चाह रहे हैं। जान पड़ता है, इस सीधी-सादी कार्य-प्रणालीसे त्रावणकोरके अधिकारी डर गये हैं। कोट्टायमके जिला मजिस्ट्रेटने डाक्टर जेड० एन० परेटके बोलनेपर पाबन्दी लगा दी है। डाक्टर परेट त्रावणकोरके जानेमाने ईसाई हैं और जहाँतक में जानता हूँ, उनकी अहिंसाकी भावनापर अभीतक किसीने कोई सन्देह नहीं किया है। नोटिस इस तरह है:

कोट्टायम जिलेके पुलिस सुपरिटेंडेंट की दी हुई रिपोर्टोंसे मुझे मालूम हुआ है कि आप भाषणों द्वारा लोगोंको शराबकी दुकानोंके सामने धरना देने और अन्य गैरकानूनी कार्य करनेके लिए भड़का रहे हैं। चूँकि आपके भाषणोंसे शान्तिभंग होने और सरकारकी सत्ताके प्रति घृणा फैलनेकी सम्भावना है इसलिए मैं इस नोटिसके द्वारा आपको सख्त ताकीद करता हूँ और १९०५ के कानून ४ के खण्ड २६ के अन्तर्गत ताकीद करता हूँ कि आप आजसे कोट्टायम जिलेके किसी भी भागमें कोई भाषण, जोशीली तकरीर या उपदेश न दें।

नोटिस में यह मान लिया गया है कि ऐसा हर भाषण, जिसमें धरना देनेकी सलाह दी जाये लोगोंको भड़काना है। लेकिन इससे भी आरोप अस्पष्ट ही बना रहता है। अन्य गैरकानूनी कार्रवाइयाँ कौन-कौनसी हैं यह इस हुक्ममें साफ नहीं किया गया है। इस तरह यदि मजिस्ट्रेटका यह हुक्म कानूनका ठीक मतलब समझकर निकाला गया है तब इसका तो अर्थ यह होता है कि त्रावणकोरमें कानूनका मंशा शराबखोरीके दुर्गुणको बढ़ावा देनेका है। राज्य शराब पीनेकी सुविधाएँ देता है, इतना ही नहीं, बल्कि वह सुधारकोंको शराबखोरोंके पास सीधे जाने और उनसे शराब पीनेकी आदत छुड़ाने योग्य एकमात्र प्रभावकारी और शान्तिपूर्ण तरीकेका आश्रय लेनेसे भी रोकता है। मुझे आशा है कि त्रावणकोरका कानून सदोष नहीं है और जिला मजिस्ट्रेटने उसकी व्याख्या करनेमें भूल की है। उनकी इस व्याख्याकी जाँच ऊँची अदालतसे कराई जानी चाहिए। कुछ भी हो, सुधारकोंका कर्त्तव्य तो स्पष्ट है। यदि कानूनमें दोष तो उन्हें उस कानूनको रद करानेका प्रयत्न करना चाहिए। कानूनको ठीक करानेके उनके प्रयत्न असफल हो जानेपर उन्हें चाहिए कि वे अपना शान्तिपूर्ण धरनेका काम जारी रखें और इसमें जेल जानेका जोखिम हो तो उसको भी उठायें। उन्हें यह सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि जो लोग उत्तेजित होनेका कारण आनेपर अपने ऊपर संयम न रख सकें, ऐसे लोगोंको स्वयंसेवक