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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

न बनाया जाये। यह बात ध्यान देने योग्य है कि भाषणपर लगाई गई इस पाबन्दीकी कोई अवधि नहीं कही गई है।

क्या यह सन्देहातिरेक है?

मुझे शुरूसे ही भय था कि शाही कृषि आयोग खेती-बाड़ीके औजारोंको बेचनेकी एक ब्रिटिश व्यावसायिक चाल-भर है। मेरे उस सन्देहकी पुष्टि इंग्लैंड में होनेवाली बैठकोंकी रिपोर्टोंसे हो रही है।

मैंने यह अंश एक ऐसे सज्जनके पत्रसे लिया है जो प्रत्येक शब्द तोलकर लिखते हैं, जिनका मन द्वेषसे मुक्त है, और जिनकी इन दिनों राजनीतिमें बड़ी दिलचस्पी भी नहीं है। मेरे उक्त अंश देनेका कारण यह है कि यही भय मुझे भी था। सम्भव है कि यह भय मेरे ही अन्दरके अविश्वासकी प्रतिध्वनि हो, और आयोगकी स्थापना वास्तवमें हिन्दुस्तानके लोगोंकी कृषि-सम्बन्धी हालतकी बखूबी जाँच करनेके सदुद्देश्यसे ही की गई हो। यदि मेरा यह सन्देह या भय बिलकुल निराधार साबित होता तो मुझे खुशी होती। लेकिन अगर वह मेरे मनमें बना हुआ है और अगर यही सन्देह औरोंके मनमें भी है, तो उस सन्देहको मनमें छिपाकर रखनेसे अच्छा है कि उसे जाहिर कर दिया जाये।

अभी हाल ही में मैंने प्रदर्शनी देखकर आये हुए एक सज्जनके पत्र में से कुछ अंश 'यंग इंडिया' में प्रकाशित किया था। वे सद्भावना लेकर उस प्रदर्शनीको देखने गये थे। लेकिन वे यह कहे बिना न रह सके कि उस प्रदर्शनीमें प्रमुखता उन कृषि यन्त्रों और औजारोंकी थी जिन्हें हमारे किसान कभी काममें नहीं लायेंगे। उन्होंने तो यहाँतक कहा कि प्रदर्शनीमें रखी गई कुछ मशीनें तो 'कूड़ेके ढेर' पर फेंक देने लायक थीं। ये महानुभाव काफी बड़े पैमानेपर मशीनोंसे काम ले चुके हैं इसलिए उन्होंने जो-कुछ कहा था अज्ञान-वश नहीं कहा था। उनकी राय में बहुत-सी ऐसी चीजें प्रदर्शनी में रख ली गई थीं कि जिनका न परीक्षण किया गया था और न जिनके बारेमें कोई गारंटी ही थी। किसी प्रदर्शनीको अगर शिक्षाप्रद और लाभदायक बनाना है, तो वहाँ ऐसी चीजें नहीं रखनी चाहिए जिनका पहले परीक्षण न कर लिया गया हो। वहाँ जानेवाले भोले-भाले लोग उन मशीनोंकी बड़ी-बड़ी तारीफें सुनकर उन्हें खरीद लेंगे और उन्हें बेकार पानेपर उस दिनको कोसेंगे जिस दिन उन्होंने उन्हें खरीदा था। फिर भी बुद्धिमत्ता और न्यायकी बात तो यह होगी कि आयोगकी रिपोर्ट प्रकाशित होनेसे पूर्व ही लोग उसके बारेमें कोई राय कायम न करें बल्कि उस ओर पूर्वाग्रहहीन दृष्टि रखें।

विधवाएँ और विधुर

एक भाई लिखते हैं:

गत १४ अक्तूबर, १९२६ के 'यंग इंडिया' में 'प्रश्नोत्तर' शीर्षकसे छपे एक पत्र लेखकके प्रश्न और आपके उत्तर मैंने ध्यानसे पढ़े हैं। पत्र लेखकके पहले प्रश्नका उत्तर देते हुए आपने लिखा है, 'यदि ऐसी किसी भी विधवा