पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
या ऐसे किसी भी विधुरका जिसने सयाना होनेपर अपनी खुशीसे विवाह किया था, पुनर्विवाह करना पाप ठहराया जाने लगे तो मैं इस आशयके सुधारका समर्थन करूँगा।
मेरी समझमें हिन्दू धर्मशास्त्रमें कोई ऐसा परिवर्तन करनेका फल बहुत ही बुरा होगा और उसका सारे समाजके नैतिक मानदण्डोंपर प्रभाव पड़ेगा। जैसे मान लीजिए कि किसी मर्द या औरतने सयाने होनेपर विवाह किया। दुर्भाग्यसे कुछ दिन विवाहित जीवन बितानेके बाद उसकी स्त्री या पतिको मृत्यु हो गई। तो आप क्या उन्हें केवल इसीलिए पुनविवाह न करने देंगे कि उनका विवाह जवानीमें हुआ है, भले ही अभीतक उनके मनमें विवाह सुखके भोगनेकी जबर्दस्त इच्छा बाकी क्यों न हो? अगर हिन्दू धर्मशास्त्रमें ऐसा कोई सुधार हो जाये तो मुझे लगता है कि लोग अपनी अपूर्त इच्छाकी पूर्तिके लिए कोई अनीतियुक्त रास्ता ढूंढ निकालेंगे और समाजमें अनीति फैल जायेगी।

इसलिए मेरी राय में इस सवालको, पूरी तरह सम्बन्धित व्यक्तियोंकी विवेक-बुद्धिपर छोड़ दिया जाना ही ठीक रहेगा।

प्रश्नकर्त्ताको मैंने जो जवाब दिया वह कानूनकी रचना करनेवाले पुरुषको चुनौती है। पुरुष स्मृतिकार अपनी स्वाधीनतामें कतरब्योंत नहीं होने देता। इसलिए मैंने अपने जवाब में यह स्पष्ट करना चाहा है कि जो बात पुरुषके लिए वांछनीय समझी जाती है, वह स्त्रीके लिए भी वांछनीय होनी ही चाहिए। और इस कारण, किसी विधुर पुरुषको पुनर्विवाह करनेका जो अधिकार है, वह अधिकार विधवा स्त्रीको भी होना चाहिए। फिर हिन्दू धर्मशास्त्र ब्रिटिश संविधानके अन्तर्गत बने कानूनोंकी तरह लचीला तो हो नहीं सकता। इसलिए पाठक देखेंगे कि मैंने जानबूझकर 'अपराध' के बदले 'पाप' शब्दका व्यवहार किया है। 'अपराध' के लिए मनुष्य-संचालित राज्यके कानूनों के अनुसार दण्ड मिलता है। किन्तु पापका दण्ड या तो भगवान देता है, या पाप करनेवालेकी आत्मा; और कोई नहीं। मेरा यह दृढ़ विचार कि मैंने अपने उत्तरमें हिन्दू समाजके लिए जो ऊँचा स्तर निर्धारित किया है, अगर वह उस स्तरतक ऊँचा उठ जाये तो इससे हिन्दू समाजको और मनुष्य जातिको बहुत लाभ पहुँचेगा।

खद्दर किसे कहते हैं?

एक मित्र पूछते हैं कि 'लीडर' समाचारपत्रमें प्रकाशित हुई 'कांग्रेसमैन' की निम्नलिखित परिभाषा ठीक है या नहीं:

जो लोग शुद्ध खद्दर यानी अपने ही हाथसे काते गये सुतसे अपने ही द्वारा बुना गया कपड़ा नहीं पहनते, उन्हें अपने आपको कांग्रेसमैन कहनेका कोई हक नहीं है और न उनको कांग्रेसमैन माना हो जाना चाहिए।

खद्दरकी ठीक-ठीक परिभाषा तो कांग्रेसके प्रस्तावोंमें दी हुई है। लेकिन उन लोगोंके सुभीते के लिए जिन्हें कांग्रेसके प्रस्ताव देखनेका अवकाश नहीं है, मैं कह देना चाहता हूँ कि कांग्रेसकी मंशा यह कभी नहीं रही है कि कांग्रेसजन जो खद्दर इस्तेमाल करें, ३२-५