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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह उन्हींके द्वारा बुना गया हो। बल्कि हकीकत तो यह है कि उस खद्दरके सूतके उन्हींके द्वारा कते होनेकी भी जरूरत नहीं है। कताई-सम्बन्धी शर्त खद्दर पहननेसे एक अलग बात है और वह केवल व्यक्तिकी इच्छापर छोड़ दी गई है। खद्दरका पहनना तो लाजिमी है — जरूरी इतना भर है कि वह खद्दर हाथकता और बुना हो। इस बातसे कोई गरज नहीं कि वह किसके द्वारा काता और बुना गया है। यह जरूरी नहीं कि जो सूत किसी कांग्रेसमैनने काता हो, उसका इस्तेमाल उसके पहने हुए वस्त्रमें किया ही जाये। मुझे इस बातपर आश्चर्य होता है कि इतने दिन हो जानेपर भी खद्दरका अर्थ समझाने की जरूरत है। अलबत्ता यह सवाल बेशक मौजूं होगा कि कितने कांग्रेसमैन उस प्रकारका शुद्ध खद्दर पहनते हैं जैसा कि कांग्रेसके प्रस्तावमें वर्णित है, न कि जैसा उपरोक्त वाक्यमें कहा गया है।

सूतकी जाँच करनेकी आवश्यकता

स्वयंसेवक और पैसा लेकर सूत कातनेवाले, जो भी सूत कातते हैं, उनके सूतकी जाँच करने की जरूरतपर मैंने अक्सर जोर दिया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि सूतकी जाँच हर रोज की जाये; किन्तु यदि हम सुतकी मजबूती और एकसारपनमें सुधार करना चाहते हैं तो हमें समय-समयपर सूतकी जाँच जरूर करनी चाहिए। इन पृष्ठों में यह भी बताया जा चुका है कि सूतकी जाँचकी मशीन बिना किसी कठिनाई के किस प्रकार तैयार की जा सकती है। मुझे आशा है कि खादीकेन्द्र इस बहुत ही आवश्यक सुधारको अवश्य लागू कर लेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-११-१९२६

५२. पत्र : वसुमती पण्डितको

आश्रम
वृहस्पतिवार, १८ नवम्बर, १९२६

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला। वर्धा आ सकती हो। तुमने अपनी तबीयत के बारेमें कुछ नहीं लिखा जिसके लिए मैंने खास तौरसे पूछा था। मुझे जो लिखना हो सो लिखना। रामदास दो दिन रहकर आज चला गया। हरिभाई[१] आज आये हैं। वे और कुसुम[२] कल भड़ोंच जा रहे हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ९२२१) की फोटो नकलसे।

  1. भौंचके हरिभाई देसाई, साबरमती आश्रमके प्रारम्भिक कालमें इन्होंने कुछ समय के लिए गांधीजीके सचिव के रूपमें कार्य किया था।
  2. हरिभाई देसाईकी पत्नी।