५६. पत्र : परमेश्वरदयाल गुप्तको
१९ नवम्बर, १९२६
आपके प्रश्नोंपर 'यंग इंडिया' में खास तौरसे चर्चा करनेका मेरा इरादा नहीं है। पहले भी ऐसी कठिनाइयोंपर मैंने चर्चा की है, और जो लेखमाला में लिख रहा हूँ, शायद उसीमें प्रसंगवश इनपर चर्चा करूँ।
मैं राम और कृष्णको वैसे ऐतिहासिक पात्र नहीं मानता, जैसे कि वे पुस्तकों में वर्णित हैं। रावण हमारी वासनाओंका और कौरव हमारे भीतरके दोषोंका प्रतिनिधित्व करते हैं। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ का उद्देश्य हमें अहिंसाका उपदेश देना है। ‘महाभारत’ में वर्णित हर चीजको में सत्य नहीं मानता।
यदि आप अहिंसापर मेरे लेखोंको फिरसे पढ़ेंगे, तो आपने जिन अंशोंको उद्धृत किया है, उनमें कोई विरोधी बातें नहीं पायेंगे।
यदि कोई व्यक्ति अहिंसात्मक उपायोंसे अपने देशकी रक्षा नहीं कर सकता तो उसका हिंसात्मक उपाय अपनाना उचित होगा, बनिस्बत इसके कि वह कायरोंकी तरह हार मान बैठे।
हर हालतमें, हर मूल्यपर सत्य ही प्रकट करना चाहिए, ऐसा मैं जरूर कहता हूँ। लेकिन सदैव कोई व्यक्ति तथ्योंको जाहिर करनेके लिए बाध्य नहीं है।
हृदयसे आपका
क्राइस्ट चर्च कॉलेज
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७४०) की फोटो-नकलसे।