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५६. भाषण: अस्पृश्यतापर, खामगाँव में[१]

८ फरवरी, १९२७

अगर मैं किसी वस्तुको अस्पृश्य मान सकता हूँ, तो वह वस्तु है विलायती कपड़ा। जो भी वस्तु राष्ट्रके लिए अहितकर है वह अस्पृश्य है। जिस किसी वस्तुसे राष्ट्रको हानि पहुँचनेका अंदेशा हो वह अस्पृश्य है। शराब अस्पृश्य है; विलायती कपड़ा अस्पृश्य है; मगर कोई भी मनुष्य अस्पृश्य नहीं है। देशवासियोंके पंचमांशको अस्पृश्य मानना तो मैं अत्यन्त क्रूर अथवा पैशाचिक कार्य मानता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-२-१९२७

५७. भाषण: पाचोरामें, तिलक स्वराज्य कोषपर

८ फरवरी, १९२७

महात्माजीने खद्दर तथा अस्पृश्यता निवारणकी जरूरतपर जोर देते हुए भाषण दिया। उनसे कुछ प्रश्न किये गये और उन्होंने उन प्रश्नोंका जवाब दिया। एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह था कि तिलक स्वराज्य कोषके लिए इकट्ठा किया गया एक करोड़ रुपया किस तरह खर्च किया गया है।

महात्माजीने इस प्रश्नका विस्तारपूर्वक उत्तर देते हुए जिज्ञासु-जनोंको अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा प्रकाशित आय-व्ययका ब्यौरा ध्यानसे देखनेके लिए कहा। उसमें पाई-पाईका हिसाब ठीक तरहसे दिया गया था। उन्होंने पूछा कि क्या आप सेठ रेवाशंकर जगजीवन झवेरी और सेठ जमनालाल बजाज सरीखे कोषाध्यक्षोंकी ईमानदारीपर विश्वास नहीं करते? तथ्य तो यह है कि कुछ लोगोंने खास कामोंपर खर्च करनेके लिए अलगसे दान दिये हैं और वे आप लोगोंके लिए खर्च किये जा रहे हैं। उदाहरणार्थ खुद सेठ रेवाशंकर भाईने ही काठियावाड़में शैक्षणिक कार्योंके लिए ४०,००० रु॰ दिये हैं। बम्बईमें एक सज्जनने अस्पृश्यता निवारणके लिए करीब दो-तीन लाख रुपये दिये हैं और वे सही तरहसे उपयोगमें लाये जा रहे हैं। दोनों कोषाध्यक्षों और अखिल भारतीय चरखा संघके सचिव श्री शंकरलाल बैंकरने भी काफी अच्छी रकम चंदेमें दी है; इसलिए ऐसी सम्भावना नहीं है कि वे लोग कोषके प्रबन्धमें लापरवाही बरतेंगे। हालाँकि उनमेंसे हरएक व्यक्ति योग्य व्यवसायी व्यक्ति है, फिर

  1. महादेव देसाई की "साप्ताहिक चिट्ठी" से।