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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी मैं यह स्वीकार करने को तैयार हूँ कि कुछ मामलोंमें नुकसान हुआ है। लेकिन किसी भी हालतमें कुल नुकसान ५०,००० रुपयेसे ज्यादाका नहीं हो सकता। वे नुकसान ऐसी अपरिहार्य जोखिम उठानेके कारण हुए हैं, जो हर व्यावसायिकको उठानी पड़ती है। उदाहरणके लिए बिहारमें बहुतसे लोगोंको खादी उधार दी गई थी और वे लोग उधारी नहीं चुका सके। आन्ध्रमें कुछ लोगोंने कोंडा वेंकटप्पैयाको धोखा दिया। उन्होंने कुछ रकमें लोगोंमें बाँट दी थी और वे आसानीसे वसूल नहीं की जा सकीं। उन्होंने उन लोगोंपर जरूरतसे ज्यादा विश्वास किया और धोखा हुआ। सभी जानते हैं कि उन्होंने अपने लिये एक पाई भी नहीं ली है। फिर कुछ मामलोंमें नुकसान ही हुआ; ये ऐसे नुकसान हैं जिन्हें अतिशय सावधानी बरतनेपर भी व्यक्ति सदैव नहीं टाल पाता। अभी हालमें श्रीयुत महादेव देसाईने, जो पिछले दस वर्षोंसे सेवाकार्यमें लगे हैं, एक विश्वासपात्र 'हम्माल' (कुली) की तरह काम करते हुए भण्डारामें ४०० रु० खो दिये। क्या मैं उनसे वह रुपया चुकानेको कह सकता हूँ? हालाँकि महादेव देसाई स्वयं तो उस नुकसानकी भरपाई यथासम्भव शीघ्र ही करनेका प्रयत्न कर रहे हैं, फिर भी मुझे खर्चके हिसाब-किताबमें उस रकमको खोई हुई रकमकी तरह ही दर्ज करना होगा।

ये चीजें तो सामान्य रूपसे व्यवसायके दौरमें होती ही हैं। में तो श्रोताओंको यहाँतक आगाह करना चाहूँगा कि एकाध बार जालसाजी भी हो सकती है। लेकिन यह सब बातें जानते हुए भी यदि आपका ऐसा खयाल हो कि कुछ अच्छा काम हो रहा है तो आप यथासम्भव जो-कुछ देना चाहें, दे सकते हैं। खुद मैं तो उन कार्य-कर्त्ताओंका विश्वास करूँगा ही जिनपर जनताका विश्वास है। उदाहरणके लिए श्री दास्ताने आपके कार्यकर्त्ता हैं। यदि वे आपके विश्वासभाजन हैं तो मैं उन्हें अविश्वासकी भावनासे क्यों देखूँ। महात्माजी ने लोगोंको आश्वस्त किया कि पाई-पाईके जमा-खर्चका हिसाब दिया जायेगा और उसमें हरएक नुकसान ठीक-ठीक साफ तौरपर दिखाया जायेगा।

ये सब जानकर यदि आप लोग देशबन्धु स्मारक कोषमें जो कि खद्दर-कोष ही है, चंदा देना चाहते हैं, तो दे सकते हैं। मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि आप जो भी कुछ देंगे, सावधानीसे खर्च किया जायेगा और यथासम्भव अच्छेसे-अच्छे ढंगसे उसका हिसाब रखा जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १२-२-१९२७