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५८. समय न चूकें

अप्रैलका अविस्मरणीय महीना[१] समीप आ रहा है और उसके साथ आ रही है राष्ट्रके उस जन्मकी स्मृति, जिसमें लाखों आदमियोंने अद्वितीय उल्लाससे भाग लिया था और यह दिखा दिया था कि अगर हम और कुछ न करें, महज एक होकर काम करें तो राष्ट्र क्या नहीं कर सकता। हमें इसी महीनेमें यह भी देखनेको मिला था कि दर्पपूर्ण बदला लिये बिना न माननेवाला और निर्दय साम्राज्यवाद अपनी रक्षाके लिए क्या नहीं कर सकता। राष्ट्रके जीवनमें ६ और १३ अप्रैलके दिन कभी न भूलने लायक दिन हैं। तबसे कौम इसी बातका प्रयत्न करती आ रही है कि वह बुराईका जवाब बुराईसे न दे और बदला लेनेके भावसे प्रेरित होकर काम न करे, बल्कि उस संयुक्त खूनकी नदीका, जो जलियाँवालामें बही थी, उपयोग आत्मशुद्धिके लिए करे। हमारा राष्ट्र चरखा, खादी, अछूतोद्धार और भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों और धर्मोकी एकतामें जो अहिंसाका भाव व्यक्त होता है, उसीके द्वारा आत्माभिव्यक्ति करनेका प्रयत्न करता रहा है। लेकिन यह तो स्पष्ट है कि खादी ही एकमात्र ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें सारा राष्ट्र हाथ बँटा सकता है। अगर हमें अहिंसात्मक ढंगसे कार्य करना है, तो हमें अवश्य ही अपनी कार्यविधि रचनात्मक बनानी चाहिए। अपने आपमें तथा अपने तरीकोंमें अचल विश्वास रखते हुए धैर्य और शान्तिके साथ कुछ रचनात्मक कार्य करना होगा। हमें अपने भीतर एकता, शक्ति और दृढ़ अनुशासन पैदा करना होगा। हमें लाख कठिनाइयाँ आनेपर भी अपने विचारोंको कार्यरूपमें परिणत करना सीखना होगा। हमें समझ लेना चाहिए कि अंग्रेजोंका व्यापार हमपर जबरन लादा गया है और उसके फलस्वरूप हमारे देशमें अंग्रेजी शासन है। अगर हम अंग्रेजी व्यापारको शुद्ध बना सकें तो अंग्रेजोंके साथ अपने सम्बन्ध हम सहज ही विकारविहीन बना सकेंगे। अंग्रेजोंसे, सच तो यह है कि सारी दुनियासे हमारा व्यापार सम्बन्ध हमारी अपनी शर्तोंके अनुसार होना चाहिए; और इसलिए उसका हम दोनोंके लिए फायदेमन्द और पूर्णतया ऐच्छिक होना आवश्यक है। मगर लंकाशायरका कपड़ा हमारे शोषणका चिह्न और हमारी विवशताका परिचायक है। इसके विपरीत खादी आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन-वृत्ति और स्वाधीनताका चिह्न है——और वह भी दो चार व्यक्तियोंके समाजों या सम्प्रदायोंकी नहीं, बल्कि सारे राष्ट्रकी आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन-वृत्ति और स्वाधीनताका चिह्न है। यह ऐसा आन्दोलन है जिसमें राजा और रंक, मर्द और औरत, लड़के और लड़कियाँ, हिन्दू, मुसलमान और ईसाई, पारसी और यहूदी, अंग्रेज और अमेरिकी और जापानी सभी, अगर वे हिन्दुस्तानका हित चाहते हैं और इसके शोषणको रोकना चाहते हैं, तो हाथ बँटा सकते हैं। इस प्रकार यह आन्दोलन अपने ढंगका निराला है। इससे सिर्फ कुछ ही लोगोंका या

  1. अप्रैल १९१९। अभिप्राय जलियाँवाला काण्डसे है।
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