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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिकांश लोगोंका ही नहीं, बल्कि सभीका भला होगा। हम लोग आगामी राष्ट्रीय सप्ताहमें चाहे जितने अन्य काम क्यों न करें मगर खादीके उत्पादन और वितरणकी व्यवस्था तो जरूर ही करें, उसके तरीके ये हैं:

१. हममेंसे प्रत्येक व्यक्ति जितनी खादी खरीद सके, उतनी खरीदे।

२. हम जितनी खादी बेच सकें, उतनी बेचें।

३. हम जितना सूत कात सकें, उतना कातें।

४. हम अपनी शक्ति भर अ॰ भा॰ च॰ संघको सहायता दें और दूसरोंसे दिलायें।

५. अन्तमें, अगर हममें इच्छाबल हो और हमारे पास अवकाश हो तो हम खादीके कार्यमें तन-मनसे लग जायें।

यह लिखते हुए मेरे मनमें यह विचार उठता है कि जो सवाल आँखके सामने मौजूद है उसका क्या होगा? बंगालके उन नजरबन्दोंका क्या होगा, जो जेलोंमें सड़ रहे हैं, जिन्हें न उनका दोष बताया गया है, न जिनपर मुकदमा चलाया गया है और न जिन्हें इसका पता है कि वे कितने दिन कैदमें रखे जायेंगे? किन्तु मेरा उत्तर बिलकुल स्पष्ट है। यदि मैं उन्हें मुक्त करानेका कोई दूसरा अच्छा बाअसर तरीका ढूँढ़ सकता, तो मैं उसे काममें लाता और जनताको आज ही बता देता; मगर वैसा कोई तरीका है नहीं। यह तरीका धीमा भले ही मालूम पड़े, मगर मेरी नम्र सम्मतिमें यही सबसे निश्चित और शीघ्र फलदायी तरीका है। इसलिए जिन्हें खादीमें विश्वास हो या खादीके सिवा और किसी दूसरी चीजमें विश्वास न हो, वे राष्ट्रीय सप्ताहमें अपनी शक्ति-भर खादीका काम करें। सच्चा सिपाही कूच करते हुए अन्तिम सफलता पानेके उपायोंपर बहस नहीं करता। वह तो यह विश्वास रखता है कि अगर वह अपना साधारण काम ठीक-ठीक करता रहेगा तो उसकी सेना किसी-न-किसी प्रकार लड़ाईमें जरूर जीतेगी। हम सबको इसी भावनाके साथ काम करना चाहिए। हमें भविष्यकी बात जाननेकी शक्ति प्राप्त नहीं है। मगर अपना-अपना काम ठीक तरहसे करनेका ज्ञान सभीको मिला है। तब हम वही काम करें, जिसके बारेमें हम जानते हैं कि इसे कर पाना हमारे लिए सम्भव है। मगर बात इतनी ही है कि इच्छाबल अवश्य हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-२-१९२७