पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१३

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सात ५ फरवरीको श्री सकलातवाला गांधीजीसे यवतमालमें मिले और दूसरे महीने में उन्होंने गांधीजीको एक खुली चिट्ठी लिखी। (परिशिष्ट १) इस पत्रमें उन्होंने कहा कि गांधीजीको मजदूर और किसानोंके संगठनमें कम्युनिस्टोंका हाथ बँटाना चाहिए और महात्मा होनेका स्वाँग छोड़ देना चाहिए। गांधीजीने उत्तरमें कहा कि श्री सकलातवालाके मनमें देशभक्ति और मानवताके प्रति प्रेम किन्तु जिसे श्री सकलातवाला मेरी गलती बताते हैं, वह स्वयं मेरी समझमें गलती नहीं है; मैं तो उसे अपने मनको सान्त्वना देते रहनेवाली एक संरक्षक शक्ति ही समझता हूँ। उन्होंने कहा : पूँजीपतियोंको मजदूरोंका शत्रु नहीं मानता। मेरी समझमें तो उन दोनोंके बीच निश्चय ही पारस्परिक सहयोग सम्भव है।" (पृष्ठ १८० ) ' बॉम्बे क्रॉनिकल 'को भेंट देते हुए गांधीजीने इसी विचारको और भी स्पष्ट करते हुए कहा: "मैं चाहता हूँ कि पूंजी और श्रमके बीच सच्चा सहयोग हो।. राजनीतिक आन्दोलनकी तरह मैं मजदूरोंके आन्दोलनमें भी आन्तरिक सुधारपर अर्थात् उनमें आत्मसन्तोषकी भावना भरनेपर विश्वास करता हूँ ।. • मजदूरोंको आत्मबलका विकास करना चाहिए । तब पूंजी सचमुच श्रमकी दासी बन जायेगी । (पृष्ठ २०४) गांधीजीको जिस तरह सिद्धान्तके रूपमें संघर्ष उचित नहीं लगता था, उसी तरह उन्हें बड़े पैमानेपर की गई चीजें भी पसन्द नहीं आती थीं। अखिल भारतीय मजदूर संघसे अहमदाबादके मजदूरोंको अलग रखनेके रुखका समर्थन करते हुए गांधीजीने अपनी श्रम-नीतिको इस तरह स्पष्ट किया : "उद्देश्य मजदूरोंके लिए पूंजीका उचित भाग लिया जाना ही है।. श्रमिकोंको इस प्रकार शिक्षित किया जाये कि अपने नेतृत्वका विकास स्वयं करें।. इसका ( आन्दोलनका ) स्पष्ट उद्देश्य है, आन्तरिक सुधार एवं आन्तरिक शक्तिका विकास ।... • मजदूरोंको राजनीतिज्ञोंके दाँव-पेचके मुहरे कभी नहीं बनना चाहिए। (पृष्ठ ३२५) गांधीजी जब श्रमिकों द्वारा पूंजीमें से “उचित भाग" लेनेकी बात करते थे, तब निश्चय ही वे "धनिकों और मजदूरोंके रहन-सहनमें हम जो अन्यायपूर्ण अन्तर देखते हैं" (पृष्ठ २९२) उसका विरोध कर रहे होते थे। गरीबकी झोंपड़ी और धनवानके महलका 'भयंकर अन्तर' भी उन्हें सह्य नहीं था । सकलातवालाके साथ गांधीजीकी इस विषयपर जो चर्चा हुई, उसमें उन्होंने अपने मानवतावादी सूत्रको इस प्रकार प्रस्तुत किया : 'हम सबकी धारणाएँ बिलकुल एक नहीं हो सकतीं। फिर भी अपने साथियोंके कामों और मतोंके प्रति हम वही आदरभाव रख सकते हैं, जिस प्रकारके आदरभावकी आशा हम अपने कामों और मतोंके प्रति दूसरोंसे रखते हैं।" (पृष्ठ ३२६) 44 " गोरक्षासे सम्बन्धित अपने लेखोंमें गांधीजीने उसकी सफलताके आधारोंको बड़ी स्पष्टतासे रखा और उसमें यथार्थ परिस्थितियोंको कदापि आँखोंसे ओझल नहीं होने दिया । 'गाय और भैंस दोनोंको एक-साथ बचा सकना असम्भव है।" (पृष्ठ २१४) उन्होंने कहा: “गोशालाओंको शास्त्रीय ढंगसे चलाया जाना चाहिए और साथ ही आदर्श दुग्धालय और आदर्श चर्मालय भी खोले और चलाये जाने चाहिए। उनके संचालनका आधार होना चाहिए: न लाभ न हानि । 'जो धर्म आर्थिक दृष्टिसे Gandhi Heritage Portal 23