पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१५

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नौ जो कुछ भी पढ़ा जाये, उसपर जल्दीसे-जल्दी अमल शुरू कर देना चाहिए । (पृष्ठ ४५८) यदि हम वेद अथवा अन्य शास्त्रोंका पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहते हैं, तो 'आधुनिक अनुभवके साथ मिलाकर खूब सात्त्विक निरीक्षण करके, शुद्ध दोहन करना आवश्यक है।" (पृष्ठ ४६०) "( 23 यदि कोई व्यक्ति अपने अनुभवके आधारपर शास्त्रोंकी पुनर्व्याख्या करता है तो कई बार ऐसा भी होता है कि समकालीन सत्यान्वेषकोंमें अप्रत्याशित रूपसे उन्हीं निर्णयोंपर पहुँचनेवाले लोग मिल जाते हैं। उदाहरणके लिए 'सेंट मैथ्यु', अध्याय ५-२२के अधिकृत संस्करणमें " 'अकारण ( विदाउट ए काज ) शब्दोंको गांधीजीने सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तसे बेमेल पाया और इसीलिए उन्हें स्वीकार नहीं किया। बादमें उन्होंने देखा कि परवर्ती अनुवादकोंने उन शब्दोंको छोड़ दिया है । (पृष्ठ ३८४) "मनुष्यको अपने पूर्वजों द्वारा अपनाये गये धर्ममें आत्ममुक्तिका उपाय स्वयं खोजना चाहिए, क्योंकि सत्यकी खोज करनेवाला इस निष्कर्षपर पहुँचता है कि सारे धर्म घुल-मिलकर ईश्वरमें समा जाते हैं, उस ईश्वरमें जो एक है और अपने बनाये सभी जीवधारियोंके लिए समान है। " (पृष्ठ ३८१) यदि कोई व्यक्ति इस बातको ध्यान में रखकर प्राचीन धर्मोकी नवीन व्याख्या करनेकी स्वतन्त्रता ले तो उसमें लगभग कोई खतरा नहीं बचता और न किसी प्रकारकी हानि ही होती है। गांधीजी पुराणोंकी सारगर्भित और काव्यपूर्ण प्रेरणासे भली-भाँति अवगत थे । वे यह भी जानते थे कि उनके आधारपर धर्मके प्रति प्रेम जगाया जा सकता है । (पृष्ठ २५७) उन्होंने कहा कि स्त्रियोंकी स्वतन्त्रता, शुद्धि और मुक्तिके लिए सीता और द्रौपदीके उदाहरण हमारे आजकी परदा आदि प्रथाओंके विरोध में प्रमाण हैं । इनसे स्त्रियोंकी उन्नति हो सकती है और परदा आदि प्रथाएँ तो नष्ट कर देनेके योग्य ही हैं। (पृष्ठ ५०) प्राचीन महाकाव्य हमारे सामने जिस धर्मको प्रस्तुत करते हैं, वह समाजको नीतिवान बनाये रख सकता है; उसे भली-भांति समझा जाना चाहिए और तदनुसार आचरण किया जाना चाहिए। हमारी परम्परा एक जीवन्त परम्परा है और इसमें प्रत्येक व्यक्तिको आत्मनिरीक्षणके द्वारा विकास करते रहना चाहिए। कर्म-सिद्धान्तका वास्तविक अर्थ सारे दुष्कर्मोको निकाल फेंकना है। "जो अपने सब दुष्कर्मों का हिसाब नहीं रखता, वह मानव-जातिमें गिने जाने योग्य नहीं है। " (पृष्ठ ४२६) शास्त्रीय अथवा वैज्ञानिक विचारकी तरह नैतिक विचार भी एक पुँजीभूत सम्पत्ति है। इसमें सिद्धान्त और आचरण दोनों शामिल हैं और इसका विकास अमलके बाद आये हुए परिणामोंको एक-दूसरेसे मिलाकर फैलाते रहनेपर ही होता है। "मैं एक नम्र किन्तु दृढ़ सत्यान्वेषी हूँ और अपने सत्यान्वेषणके दौरान सभी सत्यान्वेषियोंके सामने अपनी सारी बातें साफ तौरपर रखता रहता हूँ ताकि अपनी गलतियाँ समझ सकूँ और उन्हें सुधार लूं। " (पृष्ठ २६५) यह समझना आसान नहीं है और कदा- चित् यह निर्णय लेना मी आवश्यक नहीं है कि हमारे समकालीन सत्यान्वेषियोंमें से हम किसे अपने प्रयोगोंसे अवगत करें और उनके विषयमें किससे सलाह लें। " हम Gandhi Heritage Portal "