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पत्र : कुवलयानन्दको
 

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हिल्स आ जायें। यदि आप कृपा करके तार भेज दें, तो आपको निकटतम स्टेशनसे नन्दी हिल्सतक लानेका इन्तजाम किया जा सकता है।

जैसा कि आप जानते हैं विद्यार्थियों में बढ़ते हुए आत्म-दुरुपयोग (सेल्फ एब्यूज) ने मेरा ध्यान यौगिक आसनोंकी ओर इस बुरी आदतके सम्भावित उपचारके रूपमें आकृष्ट किया है। मैंने अपने अध्ययनके दौरान देखा कि आसनोंका बहुत-सी अन्य बुराइयोंके उपचार साधनके तौरपर भी समर्थन किया गया है। अपनी बीमारीके दौरान मैंने पंडित सातवलेकरके लेख पढ़े। मैंने सोचा कि मैं अपनेपर ही प्रयोग करूँ । शीर्षासनके बहुत-से प्रशंसात्मक वर्णनोंने मुझे इसकी ओर आकृष्ट किया। मैं पिछले पाँच दिनोंसे हर बार कुछ एक सेकेण्ड शीर्षासनका अभ्यास करता हूँ। मैं सुबह भोजनसे पहले दो मिनटके अन्तरपर दो बार शीर्षासन करता हूँ। इस अभ्याससे पूर्व 'नेति' क्रिया की जाती है, जिसमें बारीक कपड़ेके टुकड़ेसे नाक साफ की जाती है। आसन करते समय में बिलकुल निश्चेष्ट रहता हूँ। श्रीयुत गुनाजी शरीरको उठानेमें मेरी सहायता करते हैं और उसे सिरके बलपर रोके रखते हैं। सोनेके लिए जानेसे पूर्व ९ बजे यही क्रिया फिर दोहराई जाती है। दूध और फलका अन्तिम भोजन शामके ५ बजे कर लिया जाता है। कोई हानिकर प्रभाव मेरे ध्यानमें नहीं आये हैं। इसके विपरीत में ज्यादा ताजगी और ताकत महसूस करता हूँ। और थोड़ी सैर भी कर सकता हूँ। मेरी भूख बढ़ गई है। अब प्रश्न यह है कि इस तरह निष्क्रियभावसे किये गये शीर्षासनसे रक्तचाप कम होगा या बढ़ेगा। मैं समझता हूँ कि 'नेति से कभी किसी प्रकारकी हानि नहीं हो सकती। हृदयगतिकी परीक्षा कराने से इस समय मेरा रक्तचाप १८० मालूम हुआ है। पाँच दिनोंके दौरान रक्तचाप नहीं बढ़ा है। क्या आप मुझे अपने यहाँ पहुँचनेतक अभ्यास चालू रखनेकी सलाह देंगे या स्थगित कर देनेकी ।

यदि आपकी सलाह शीर्षासन स्थगित कर देनेकी हो, तो मुझे तार भेज दें। मैं नहीं चाहता कि मेरी ओरसे उतावलीमें काम किये जानेसे आसनोंको दोष दिया जाये ।

हृदयसे आपका,,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (जी० एन० ५०४५) की फोटो-नकलसे ।