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सत्य एक है

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संघके काममें दिलचस्पी लेते हैं और हिन्दुस्तानके ढोरोंकी रक्षाके लिए संघ द्वारा अपनाए गये तरीकोंको पसन्द करते हैं, प्रार्थना करता हूँ कि वे व्यक्तिगत अपीलके बिना ही यथाशक्ति अपनी-अपनी सहायताकी रकमें भेज दें। जो-कुछ मिलेगा, पत्रके इन स्तम्भोंमें उसकी प्राप्ति स्वीकार की जायेगी। पाठक जानते हैं कि संघका सालाना सदस्यता शुल्क ५ रुपये या २४,००० गज अच्छा बटदार स्वयं काता गया सूत है। फिर भी, मैं उन लोगोंसे, जो संघके तरीकों और प्रबन्धमें विश्वास रखते हैं, अच्छी रकमें मिलनेकी आशा रखता हूँ।[१]

मुझे आशा है कि गोरक्षा संघके कार्यकर्ता इस कोषके लिए धन संचयका भार जमनालालजीपर नहीं डाल देंगे । ढ़ेरों की देखरेखके लिए परनेरकर नामक एक अनुभवी सज्जनको नियुक्त किया गया है। एक भारतीयको, जो अमेरिकासे चमड़ा साफ करनेका शिक्षण लेकर आये हैं, टैनरीका काम सौंपा गया है। आशा है मैं उन दोनोंके कामका विवरण जल्दी ही प्रकाशित करूंगा। मैं गोरक्षा संघके कार्यकर्ताओंको सुझाव देता हूँ कि वे आश्रममें और इन दोनों क्षेत्रोंमें जो काम किया जा रहा है, उसे स्वयं देखें ।

[अंग्रेजीसे]


यंग इंडिया, २१-४-१९२७

२५८. सत्य एक है

पौलेंडके एक प्राध्यापक लिखते हैं ??[२]

मूल पत्रके शब्दोंमें मैंने जहाँ-तहाँ एक दो शब्द बदल दिये हैं ताकि लेखकका मतलब मूल पत्रकी अपेक्षा और ज्यादा साफ हो जाये । इस पत्रके लेखकने मुझमें जो शक्तियाँ बताई है [३]मैं उनका किसी भी प्रकारसे दावा किये बिना अत्यन्त नम्रतापूर्वक उनके प्रश्नोंका उत्तर देनेका प्रयत्न करूँगा। मैं सोच-समझकर जो दावा करता हूँ, वह बड़ा सरल और सबल दावा है। मैं एक नम्र किन्तु अत्यन्त सच्चा सत्यान्वेषी हूँ। और अपने सत्यान्वेषणमें सभी सत्यान्वेषियोंको अपनी सब बातें साफ-साफ बता देता हूँ, ताकि अपनी गलतियाँ समझ सकूं और उन्हें सुधार लूं। मैं मानता हूँ कि मैंने अपने अनुमानों और निर्णयोंमें कई बार भूल की है। उदाहरणके लिए जब अधूरे सबूतके आधारपर ही मैंने यह अनुमान कर लिया था कि खेड़ा जिलेके लोग सविनय अवज्ञाके लिए तैयार हैं; फिर मैंने एकाएक देखा कि मैंने यह अनुमान लगाकर भयंकर भूल की थी। [४]मैंने देखा कि वे सविनय अवज्ञा नहीं कर सकते, क्योंकि वे

  1. १. इसके बादका विवरण २४-४-१९२७के नवजीवनसे लिया गया है।
  2. २. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रलेखकने यंग इंडिया में गांधीजीके लेखोंको पढ़कर कुछ प्रश्न किये थे। प्रश्न उत्तरोंपरसे स्पष्ट हैं।
  3. ३. लेखकने गांधीजीको गहरा आध्यात्मिक अनुभव सम्पन्न व्यक्ति कहा था।
  4. ४. देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ३३