पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/३०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६७
खादी भण्डार

आखिर प्रत्येक मनुष्यके लिए यह आवश्यक है कि वह अपना मार्गदर्शन स्वयं ही करे। पर इस हालतमें एक शर्त अनिवार्य है और वह यह कि आदमी हमेशा परमात्मासे डर कर चले। इस प्रकार बराबर अपनी आत्मशुद्धि करता रहे। मनुष्यको सच्चा मनुष्य बननेके लिए अपना संस्कार करना चाहिए। इसी संस्कारको हिन्दू द्विज बनना कहते हैं और ईसाई दुबारा पैदा होना।

पत्रलेखक महोदयके अन्तिम प्रश्नोंके जवाब आसानीसे दिये जा सकते हैं । असलमें वे इनका उत्तर उपर्युक्त कथनमें ही पा सकते हैं। मैं प्रत्येक देशकी स्वाधीनताको उसी अर्थमें और उतने ही अंशोंमें सत्य मानता हूँ जिस अर्थमें और जितने अंशोंमें प्रत्येक मनुष्यकी स्वाधीनताको । अतः न तो कुछ देशों या राष्ट्रोंमें स्वराज्य विषयक सहज अयोग्यता होती है और फलतः न कुछ देशोंमें अन्य देशोंपर शासन करनेकी सहज योग्यता ही । निःसन्देह पत्रलेखक सचमुच यह समझते हैं कि जर्मन लोग दूसरे राष्ट्रोंपर शासन करनेकी ईश्वर प्रदत्त शक्ति होनेका दावा करते हैं। परन्तु साम्राज्यवादी जर्मनोंके साथ-साथ ऐसे नम्र लोकतंत्रवादी जर्मन लोग भी तो हैं, जो शान्तिपूर्वक अपने देशका शासन कर पाने में ही सन्तोष मानते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २१-४-१९२७

२५९. खादी भण्डार

तमिलनाडु, बिहार, केरल और महाराष्ट्र, इन चार प्रान्तोंके खादी भण्डारोंकी निम्नलिखित सूची[१] दिलचस्पीसे पढ़ी जायेगी। मैं दूसरे सूबोंकी सूचियाँ भी मिलते हीं छापना चाहता हूँ। यह सूची खादीकी सन् १९२० से अब तककी भारी प्रगतिकी सूचक है। हमारे लक्ष्यको देखते हुए तो अभी और बहुत प्रगति करनी है। जब खद्दरकी बिक्री भी घी और अनाजकी तरहसे आम हो जायेगी, तब चार प्रान्तोंमें ११० भण्डार होनेके बजाय अकेले बम्बई जैसे एक ही शहरमें उतने भण्डार हो जायेंगे और तब भी वे बहुत अधिक नहीं माने जायेंगे । और खादीका घी और अनाजकी तरह सार्वत्रिक होना अचम्भेकी बात या अनहोनी बात क्यों समझी जाये ? पर अगर खद्दरका ऐसा सार्वत्रिक हो सकना सचमुच असम्भव हो तो फिर इसे क्यों अनहोनी बात समझना चाहिए कि आजसे कोई बीस साल बाद यहाँ आस्ट्रेलियाके घी की और अमेरिकाके गेहूँकी भी उतनी ही दूकानें होंगी जितनी इस समय यहाँ घी और गेहूँकी देशी दूकानें हैं ? विलायती कपड़ा चूंकि सस्ता या आँखोंको लुभानेवाला होता है इसलिए अगर उसे खरीदना देश-भक्तिमें शामिल हो तो फिर वैसा समय आनेपर सस्ता विदेशी मक्खन और गेहूँ खरीदना भी देश-भक्तिका चिह्न क्यों न माना जाये, फिर चाहे हमारे देशके ग्वाले और किसान बेकार ही क्यों न हो जायें

  1. १. यहाँ नहीं दी जा रही है।