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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतीक्षा किये बिना ही यहाँ आ जाना चाहिए। तुम्हारे आसपासके लोगोंका प्रेम तुम्हें सचमुच सशक्त बनानेवाला और ऐसा होना चाहिए कि वह तुम्हें वहाँ रोक कर रख सके। वहाँके लोगोंके स्नेहका वर्णन करनेवाला तुम्हारा पत्र अत्यन्त मर्मस्पर्शी है, फिर भी अगर तुम्हारे मनको वहाँ शान्ति न मिल सके तो दुःखकी बात होगी। मगर कोई भी अपना स्वभाव एकदम ही नहीं बदल सकता; और अगर अपनेको शान्त रखनेकी तुम्हारी कोशिश बेकार रहे, तो तुम्हें वहाँके मित्रोंको साफ-साफ बता देना चाहिए और जरा भी संकोच किये बिना यहाँ आ जाना चाहिए। किसी भी हालतमें वहाँ तुम्हारा स्वास्थ्य नहीं बिगड़ना चाहिए। तुम्हें अपने स्नायुओंपर इतना जोर डालनेकी कोशिश हरगिज नहीं करनी चाहिए कि तुम्हारा स्वास्थ्य बरबाद हो जाये ।

आज यहाँ छठा दिन है। मैं अभीतक यहाँके जलवायुका आदी नहीं हो पाया हूँ | अम्बोलीमें जैसी स्फूर्ति और शक्ति महसूस होती थी वह यहाँ महसूस नहीं होती । परन्तु डाक्टर मुझे यकीन दिलाते हैं कि अन्तमें नन्दी हिल्स जरूर अम्बोलीसे अधिक लाभदायक सिद्ध होगी। उनका कहना है कि यह रक्तचापसे पीड़ित लोगोंके लिए एक आदर्श स्थान है। चिन्ता या परेशानीका कोई भी कारण नहीं है।

चूँकि तुम दोनों उपवासोंको भूल जानेके कारण इतनी परेशान थीं, इसलिए उपवास करके तुमने अच्छा किया।[१] इसमें सन्देह नहीं कि जब स्नायुओंपर जोर पड़ रहा हो, तब शरीरकी दृष्टि से भी उपवास करना उपयोगी होता है। बीमार पड़ने से पहले मैंने उपवास कर लिया होता तो निश्चय ही अच्छा रहता। उस दिन कामका भयंकर जोर था। लेकिन यह तो कुछ चीज हो जानेके बाद बुद्धि आने जैसी बात हुई। हाँ, मेरी उस मूर्खतापूर्ण भूलसे अन्य कोई व्यक्ति लाभ उठा सकता है। मैं इसे मूर्खतापूर्ण इसलिए कहता हूँ कि मुझे मालूम था कि कामका जोर पड़ रहा है, और ऐसी परिस्थितिमें उपवास करनेका लाभ भी मैं जानता था। मगर शैतान हमारे पीछे हमेशा लगा रहता है, और वह हमें, जब हम सबसे कमजोर हालतमें होते हैं, आ पकड़ता है। उसने मुझे दुर्बल और ढीला पाया और घर दबाया। इसलिए तुम्हारे उपवाससे मुझे कोई चिन्ता नहीं है। तुम्हें केवल इतना समझ लेना होगा कि उपवास कब और कैसे करना चाहिए ।

तुम्हें अपनी शिरायें वज्र बनानी ही होंगी। हमारे कामके लिए यह जरूरी है। भगवान तुम्हारे सहायक हों।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२१८) से ।
सौजन्य : मीराबहन
  1. १. मीराबहनने इस सम्बन्ध में लिखा था : "राष्ट्रीय सप्ताह ६ अप्रलसे शुरू होता है और १३ को खत्म होता है, मगर मैं उसके प्रथम और अंतिम, दोनों दिन उपवास करना भूल गई थी।