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२६२. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

नन्दी हिल्स, मैसूर
२५ अप्रैल, १९२७

प्रिय सतीश बाबू,

मैंने इधर कुछ दिनोंसे आपको पत्र नहीं लिखा है। मुझे आपके पत्र मिलते रहे हैं। कृपया मेरे बारेमें कुछ भी चिन्ता न कीजिए। मेरी जितनी भी देखभाल और सावधानी रखी जा सकती हैं, सो मैं पूरी-पूरी रख रहा हूँ। यहाँपर अच्छीसे अच्छी डाक्टरी सलाह मुझे सुलभ है। मौसम सुहावना और ठंडा है। मैं बिना सोचे-समझे या बिना डाक्टरोंकी रायके किसी सक्रिय काममें नहीं जुट जाऊँगा। यदि आपका स्वास्थ्य आपको आनेकी इजाज़त देता है तो कृपया जरूर आइये । लेकिन किसी भी हालत में आपको अपने शरीरपर बोझ नहीं डालना चाहिए । यहाँकी ऊँचाई ४८,००० फीटसे अधिक है। २,००० फीटकी सीधी चढ़ाई है। यह बहुत ज्यादा शुष्क स्थान है और आसपास पौधोंकी हरियाली नहीं है ।

आपके पत्र हेमप्रभादेवीके विषयमें कुछ नहीं कहते । क्या वह अब बिलकुल ठीक है ? और आपका बच्चा (उसका नाम मैं भूल जाता हूँ) कैसा है ? और तारिणी कैसा है ?

आप सबको सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५६७) की फोटो-नकलसे ।

२६३. पत्र : म्यूरियल लेस्टरको

आश्रम, साबरमती[१]
२५ अप्रैल, १९२७

मुझे आपका २९ मार्चका पत्र मिला। यह पत्र मुझे बोलकर ही लिखवाना पड़ रहा है। क्योंकि मुझे यथासम्भव बिस्तरपर लेटे रहना चाहिए। आप चाहती हैं कि मैं आपको किसी ऐसे भारतीय मित्रका नाम बताऊँ, जो आपके नये हॉलका शिलान्यास कर सकें। एकमात्र व्यक्ति जिसके बारेमें मैं सोच सकता हूँ, और जिसे में पूरी तरह इस कामके लिए तजबीज कर सकता हूँ, और जिसे में व्यक्तिगत रूपसे भी बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, वह व्यक्ति पण्डित जवाहरलाल

  1. १. स्थायी पता ।