पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नेहरू है। उनका पता है : पण्डित जवाहरलाल नेहरू, क्लीनिक स्टाफनी, मोंटाना, साउथ सियारे, स्विट्जरलैण्ड । आप उन्हें अवश्य लिखें। इस पत्रको इस्तेमाल करके उन्हें राजी कर लें। यदि आप उन्हें चाहेंगी तो वह आ जायेंगे और उन्हें बुलाकर आपको प्रसन्नता होगी। मैं भारतमें जिन अत्यन्त ईमानदार लोगोंको जानता हूँ, वह उनमें से एक हैं। मैं उन्हें भी पत्र लिख रहा हूँ ।

मुझे आपका प्रस्ताव बिलकुल पसन्द नहीं। मैं उस प्रस्तावका जैसा मसविदा चाहता हूँ, वह निम्नलिखित है। मैं जानता हूँ कि मेरा मसविदा पास कराना आपके लिए कठिन होगा। परन्तु यदि इस मसविदेको उपयुक्त समर्थन मिले तो केवल इसीसे काम चल सकता है। और उसे भारत सरकार बिना किसी कठिनाईके स्वीकार कर लेगी। क्योंकि वे कहेंगे कि हम किसी भी ऐसे काममें रोड़ा नहीं अटकायेंगे, जिसे भारतीय अपने अधिकार प्राप्त प्रतिनिधियों द्वारा सम्पन्न कराना चाहते हों। वे कहेंगे कि हमने यह विभाग उन्हें सौंप दिया है। वे जैसे चाहें आर्थिक व्यवस्थाको ठीक करें । क्या आप मेरा अभिप्राय समझ रही है ? हमारा पक्ष यह है कि सरकार ईमानदारीसे कुछ नहीं करना चाहती। लोगोंका वास्तव में इस मामलेमें कोई हाथ नहीं है। आबकारी आयको चुने हुए प्रतिनिधियोंके हाथ सौंप देना ही सरकारकी बदनियतीका सबूत है। शिक्षा, चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारमें सौंपा गया विषय है और इसे वित्तीय सहायता आबकारी आयसे ही दी जाती है। इस तरह सरकारने गतिरोध पैदा कर दिया है। यदि मान्यता प्राप्त प्रतिनिधि शराबकी दूकानें बन्द करवा दें, तो उन्हें शिक्षामें भारी कमी करनी पड़ती है या फिर उन्हें उन लोगोंपर जो मौजूदा करोंका ही बोझ किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं कर सकते, और अधिक कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए यदि ऊपर बताई गई स्थिति सही है, तो इसका उपाय यह है कि सरकार आबकारी विभागको अपने पास रखे और राजस्वमें जो कमी हो उसे सेनाके बजटमें कटौती करके पूरा किया जाये। यदि उन्हें कानून द्वारा मान्यता प्राप्त वेश्यावृत्तिसे राजस्व वसूल करनेका हक है, तो उतना ही हक शराबकी दुकानोंसे राजस्व वसूल करनेका भी है। यदि मेरी रायको ध्यान दिये बिना भी स्वतन्त्र रूपसे आपकी यही स्थिति है और यदि आप इस स्थितिको तथ्यों और आँकड़ों एवं दूसरे साहित्यके अध्ययन द्वारा परिपुष्ट बना सकती हैं, तो आपका प्रस्ताव इस तरहका होगा :

इस सभाके मतमें भारतमें शराबके व्यवसायको बनाये रखनेमें इस देशके लोगोंका साझेदार होना और इसलिए प्रान्तोंके अधिकार क्षेत्रको हस्तान्तरित किया हुआ विषय बना देना सरकारका अनुचित कदम था। इसके फलस्वरूप चूंकि शराब-कर राजस्वका मुख्य स्रोत है, जिसपर खर्चा करनेवाले शिक्षा एवं विकास विभाग निर्भर करते हैं, इन विभागोंके उत्तरदायी मन्त्रियोंके लिए मद्यनिषेधकी नीति अपनाना कार्यरूपमें असम्भव हो गया है। इस सभाके मतमें भारत सरकारको शराब-राजस्वको केन्द्रीय विषय बना रहने देना चाहिए था और भारत सरकार ही को पूर्ण मद्यनिषेधकी नीति लागू करनी चाहिए थी। ऐसा करनेसे राजस्वमें जो क्षति होती, उसकी पूर्ति निरन्तर बढ़ते रहनेवाले