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पत्र : नारणदास गांधीको


और अधिकांशमें अनावश्यक सेनाके खर्चमें कटौती करके की जा सकती थी । इसलिए यह सभा सरकारसे अनुरोध करती है कि इस प्रस्तावमें अभिव्यक्त इच्छाको लागू करनेके लिये आवश्यक कदम उठाये ।

आप जिस रूपमें चाहें इस प्रस्ताव में हेरफेर कर सकती हैं, परन्तु इसका आशय नहीं बदलना चाहिए। मुझे आशंका है कि आपके लिए इस तरहका प्रस्ताव पास कराना कठिन होगा। परन्तु वास्तव में केवल इसी प्रस्तावके पास होनेका महत्त्व है। और यदि आप समझती हों कि इस तरहके उग्र प्रस्तावके लिए अभी इंग्लैंडमें वातावरण नहीं बना है, क्योंकि मैं स्वीकार करता हूँ कि यह प्रस्ताव उग्र है, तो ऐसी स्थितिमें आप केवल अपना दृष्टिकोण शिक्षित जनताके सम्मुख प्रस्तुत करें और प्रस्तावकी प्रतीक्षा करें। आपके मित्रोंने जो प्रस्ताव आपको दिया है, वह गलत दिशामें कदम है। आप जानती हैं कि गलत ढंगसे शुरू की गई चीजसे पैदा हुई शरारतको खत्म करना कितना मुश्किल काम होता है।

मेरी हालत बेहतर हो रही है। अपने जिस्म और दिमागको, जहाँतक मुमकिन हो, आराम देनेके लिए मुझे अभी विशेष सावधानी जरूर बरतनी है ।

हृदयसे आपका,

कु० म्यूरियल लेस्टर

चिल्ड्रन्स हाउस
बो

लन्दन ई० ३

अंग्रेजी (एस० एन० १२४७५) की फोटो-नकलसे ।

२६४. पत्र : नारणदास गांधीको

मौनवार [२५ अप्रैल, १९२७][१]

चि० नारणदास,

तुम्हारा पत्र मिला ।

पुरुषोत्तमका स्वास्थ्य अब ठीक होता जा रहा है, यह जानकर तसल्ली हुई। तुम्हारा तार ठीक समझमें नहीं आया, परन्तु वल्लभभाईसे मिल लेनेके लिए तार दे रहा हूँ ।

तुमने जिन-जिन लोगोंको जो-जो जवाब दिये हैं वे ठीक हैं। अब यदि वे मुझे कुछ लिखेंगे तो तुम्हें सूचित करूंगा। दास्तानेके सुझावके बारेमें भाई शंकरलालको लिखूंगा।

  1. १. पारनेरकर मार्च १९२७ में आश्रम में आये थे । दुग्धालथ सम्बन्धी आँकड़े ८-५-१९२७ के नवजीवन में प्रकाशित हुए थे। देखिए “पत्र : मगनलाल गांथांको ”, २७-४-१९२७ भी। ३३-१८