दुग्धालयके हिसाबके बारेमें मुझे संतोष नहीं हुआ। उसमें २१ भूलें हैं; उन्हें सुधारे बिना काम नहीं चलेगा। भूलें सुधारने के बाद हिसाब मुझे भेजना। पारनेरकरसे मिलकर ये भूलें उन्हें बताना। मगनलाल वहाँ आया हो तो उसके साथ फिर चर्चा करना। इतनी सारी भूलें-और वे भी मोटी - उसे कैसे दिखाई नहीं दीं? भूलें मोटी न हों तो भी उनकी संख्या भयंकर है। सुधरे हुए आँकड़े मुझे भेजते समय भूलवाले आँकड़े भी साथ भेजना, इसे नि:शेष निपटा देना ।
बापूके आशीर्वाद
सौजन्य : नारणदास गांधी
२६५. पत्र : मणिबहन पटेलको
नन्दी दुर्ग
मौनवार, चैत्र बदी ९ [२६][१] अप्रैल, १९२७
तुम्हारा पत्र मिला। उसका अन्तिम वाक्य अधूरा है और हस्ताक्षर तो है ही नहीं और न तिथि ही है। इससे तो बहुत ज्यादा उतावली प्रकट होती है। हमारे यहाँ कहावत है कि धीरजका फल मीठा होता है। उतावली करनेसे तो आमोंको पकाया नहीं जा सकता - यह भी हमारी एक कहावत है। उसका अंग्रेजी अनुवाद "हेस्ट इज वेस्ट" किया जा सकता है। तुमने बापूके लिए अपनी साड़ीमें से धोती निकाल दी, यह तो बहुत ही अच्छा किया। इस नियमको जारी रखो । डाह्याभाई तथा यशोदा भी ऐसा ही करें तो क्या ही अच्छा हो ।
कराचीवाली जगह नहीं मिलेगी, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं। ऐसा हो भी तो दूसरी जगहें तो तैयार ही हैं। परन्तु इसका निश्चय हो जाये तब दूसरा विचार करेंगे ।
बापूके आशीर्वाद
बापुना पत्रो - ४ : मणिबहेन पटेलने
- ↑ १. साधन-सूत्रमें “२५" है ।