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२६६. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मौनवार, चैत्र बदी ९ [ २६ अप्रैल, १९२७ ][१]

बहनो,


तुमने मुझे लिखने से छुट्टी दे दी, इसका तो यह मतलब मालूम होता है कि तुम खुद लिखना नहीं चाहतीं। या जैसे राजाके बिना राज्यमें अन्धेर चलने लगता है वैसे ही तुमने अभीतक नई सभानेत्रीका चुनाव नहीं किया, इसलिए क्या तुम्हारी संस्था में भी अन्धेर चल रहा है ? ठीक है न ?

कुछ भी हो, मगर मैं खाऊँ-पीऊँ और तुम्हें याद न करूं तो यह हो ही कैसे सकता है ? तुममें से किसीने गंगादेवीके बारेमें कुछ भी समाचार नहीं दिया, इससे में अनुमान करता हूँ कि अब वे बिलकुल स्वस्थ हो गई हैं। जो भी बहन बीमार पड़े, उसकी खबर तो तुम्हें मुझे देनी ही चाहिए।

आश्रम में आज तो जैसे स्त्रियाँ हैं वैसे पुरुष भी हैं। मगर मानो कि किसी दिन पुरुष न हों और चोर वगैरा आ जायें, तब तुम सब क्या करोगी, इसका विचार कभी तुमने किया है ? न किया हो तो करके मुझे लिखना कि तब तुम क्या करोगी । यह न मानना कि ऐसा मौका कभी आयेगा ही नहीं। हमारे छोटे गाँवोंमें ऐसे मौके अक्सर आ जाया करते हैं। दक्षिण आफ्रिकामें भी बहुत बार आते हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६४६) की फोटो-नकलसे ।

२६७. पत्र : छगनलाल गांधीकों

मौनवार, चैत्र बदी ९ [२६ अप्रैल, १९२७][२]

चि० छगनलाल,

तुम ब्यौरेवार पत्र लिखनेमें तनिक भी संकोच मत करना। पूछने लायक बात पूछनेमें भी संकोच मत करना ।

खर्चके सम्बन्धमें जमनालालजीसे सलाह-मशविरा करके जो हो सकता हो सो करना । जितना काम तुम्हारी पहुँचके बाहर हो, उसे अवश्य समेट देना ।

  1. वर्षका निर्धारण पत्रके पाठसे किया गया है।
  2. वर्षका निर्धारण पत्र में फूलचन्दके पत्रके उल्लेखके आधारपर किया गया है। गांधीजी के उत्तरके लिए देखिए " पत्र: फूलचन्द शाहको ", २७-४-१९२७ ।