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पत्र : मगनलाल गांधीको


खराब नहीं होता। जरूरी हो तो यह काम सब बारी-बारीसे करें । पर ये तो बीमार आदमीके मनकी तरंगें हैं। दूर बैठा हवाई किले बना रहा हूँ। परन्तु तुम सभी अलग- अलग और एक दूसरेके साथ विचार करके इस समस्याका अपनी इच्छाके अनुसार उपयुक्त उपाय ढूंढ़ निकालो। पर इस बातका चाहे कुछ भी निर्णय करना, इस बार चोर कौन थे यह तो हमें मालूम करना ही चाहिए। इतने ज्यादा थे इसलिए उनके पाँवोंके चिह्न तो मिलते ही चाहिए । जिन्हें चोट लगी थी वे पकड़में आने ही चाहिए। यदि तुम सब जो कुछ किया गया है उसे समेट लेनेका निर्णय करो तो भी मैं सहमत हो जाऊँगा, क्योंकि आखिरकार यह चलाना तो तुम सबको ही है । हिसाबकी जाँच तो एकदम हो जानी चाहिए। चाहे नाथजीके ऑडीटरको बुलाओ या चरखा संघके या जो भी पसन्द हो । अब इसमें ढील नहीं करनी चाहिए। ऑडीटरसे कहना कि आलोचककी दृष्टि से बारीकी से जाँच करें और जो-कुछ कहना हो सो कहे। चि० नारणदास साथ रहे, उससे उसकी सलाहका लाभ भी मिलेगा । यह पत्र तुम सबके लिए है। मेरी तबीयत धीरे-धीरे सुधरती जा रही है। कल काफी चल लिया इसलिए आज आराम कर सका हूँ ।

बापूके आशीर्वाद

पुनश्च :

ऊपरका पत्र लिखनेके बाद तुम्हारे दूसरे पत्र में व्यवस्था वगैराके बारेमें पढ़ा। इसलिए अब नियमके अनुसार तो साथका पत्र चि० छगनलालको लिखना चाहिए न ? यदि परिवर्तन सोच-विचार कर किये हों तो सब ठीक ही हो गया । सर गंगारामके बारेमें समझा । वर्णनसे मुझपर कुछ अच्छी छाप नहीं पड़ी। खेतीके सम्बन्ध में अगर कुछ सीख सके हो तो ठीक है। अपना रास्ता अलग है। हम अपने धर्मका पालन करते हुए मरें, तो हमने अपना कर्त्तव्य कर लिया ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

रुखी और राधाके क्या समाचार हैं ?

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ७७६६) से ।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी