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२६९. पत्र: मीराबहनको

मंगलवार, २६ अप्रैल, १९२७

चि० मीरा,

मैं फिलहाल जितने अधिक पत्र लिख सकूँ, उतने मुझे लिखने ही चाहिए। मैं अपने कलके पत्रके जवाबकी प्रतीक्षा उत्सुकतासे करूंगा। अब तुम्हें प्रसन्न हो जाना चाहिए ।

अगर वहाँ बढ़ई हों तो तुम्हें [अपने] सफरी चरखेकी मरम्मत करवा लेनी चाहिए। जितनी मरम्मत तुम खुद कर सकती हो, उतनी तुम्हें स्वयं कर लेनी चाहिए। तुम वहाँ मित्रोंसे आवश्यक औजार माँग सकती हो या कुछ खरीद सकती हो । यह सदा सुविधाजनक होता है।

मैं कलसे आज अपेक्षाकृत अधिक ताकत महसूस कर रहा हूँ । सुब्बैया डाक ले जानेका इन्तजार कर रहा है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२१९) से ।
सौजन्य : मीराबहन

२७०. पत्र : क्षितीशचन्द्र दासगुप्तको

नन्दी हिल्स, मैसूर
२६ अप्रैल, १९२७

प्रिय क्षितीश बाबू,

यद्यपि मैंने अपनी बीमारी के दौरान आपको पत्र नहीं लिखा है, मैंने बहुधा आपके और प्रतिष्ठानके बारेमें सोचा है । मैं काफी ठीक चल रहा हूँ और थोड़ा- बहुत पत्र लेखन आदि कर सकता हूँ । कृपया मुझे अवश्य लिखियेगा कि आप कैसे चल रहे हैं और सोदपुरकी जलवायु वहाँके कार्यकर्ताओंको कैसी माफिक पड़ रही है।

मैं मीराबाई के पत्रसे सफरी चरखेके सम्बन्ध में एक अंशका उद्धरण आपको भेज रहा हूँ। मैंने भी चरखेके पुर्जोंको कमजोर पाया है। चाहे सफरी चरखेका वजन थोड़ा बढ़ जाये, लेकिन यदि उसे ज्यादा मजबूत बनाया जाये तो कुछ असुविधा- जनक नहीं होगा । घुरीके वेयरिंग किसी धातुके होने चाहिए और ऊपरके हिस्से भी