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पत्र : आर० बी० ग्रेगको


निस्सन्देह मजबूत होने चाहिए । आरे भी जैसे हैं, उससे ज्यादा मजबूत होने चाहिए । खैर आप देखेंगे ही कि क्या किया जा सकता है और क्या करना चाहिए। मीराबाई बहुत ही सोच-समझकर काम करनेवाली है। उसकी सदाशयपूर्ण आलोचनाका समुचित लाभ उठाना चाहिए ।

हृदयसे आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी० एन० ८०३२) की फोटो-नकलसे ।

२७१. पत्र : आर० बी० ग्रेगको

नन्दी हिल्स
२६ अप्रैल, १९२७

प्रिय गोविन्द,

आप चिन्तित न हों । यद्यपि मैं आपके पत्रका तत्काल उत्तर दे रहा हूँ। लेकिन शालीनतावश ऐसा नहीं कर रहा हूँ बल्कि इससे मुझे खुशी होती है। जहाँतक भोजन सुधारमें मेरी धुनका सम्बन्ध है, मैं आपके आगे नहीं झुक सकता। पिछले बीस वर्षोंके दौरान मेरा भाग्य कुछ ऐसे कठोर साँचे में ढला-सा रहा है कि भोजन- सम्बन्धी अनुसन्धान करनेकी तीव्र इच्छाके बावजूद, मैं इस भाग्यसे अलग नहीं निकल पाया हूँ । परन्तु अब जबकि मुझे प्रकृतिने परास्त कर दिया है, मेरी अनुसंधानकी वह भूख जो कभी भी पूरी तरह मिटी नहीं थी, परन्तु केवल दबी हुई थी, बढ़ गई है और मुझे इस दिशा में हरएक चीजको पानेकी तीव्र उत्कण्ठा रहती है ।

अब मैं कामकी बातपर आता हूँ। एक सनकी साथी द्वारा उकसाये जानेपर पिछले दो दिनोंसे मैंने एक मुख्य परिवर्तन किया है। उसने सुझाव दिया था कि में ताजे नीमके पत्तोंका रस दूधमें मिलाकर लूँ। उनका कहना है कि मेरी बीमारी रक्तचापकी नहीं अपितु वातकी है। रक्तचाप तो निश्चय ही है, परन्तु में इस मित्रसे सहमत-सा हूँ कि मूल कारण वातका अस्थायी परिणाम रक्तचाप है। और उनका खयाल है कि मैं भोजनके साथ नीम के पत्तोंका रस लेकर वातका इलाज कर सकता हूँ। ये पत्ते कड़वे होते हैं। वे कहते हैं कि इनमें आवश्यक विटामिन होते हैं। अब में उनके प्रभावका निरीक्षण कर रहा हूँ। आपका पत्र कल मिला था और आज मैंने यह तबदीली कर ली है कि मैं बगैर उबाला दूध ले रहा हूँ। यह सुझाव मुझे अम्बोलीमें कुछ डाक्टर मित्रोंने दिया था। परन्तु उस समय मैंने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया था। आपके पत्रसे वांछित प्रतिक्रिया हुई है। मेरे मेजबान इस पहाड़ीपर कुछ बकरियाँ लाये हैं, उनका दूध देखरेख में निकाला जाता है। इसलिए आज सुबह थनोंसे ताजा दूध लाया गया था। इसमें नीमके पत्तोंका रस और मुनक्केका रस और गरम पानी मिलाया