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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


गया था। ऐसा दूध लेनेसे आपके पत्रमें लिखे अनुसार दूबके विटामिन मुझे मिल जाते हैं और उस मित्रके अनुसार नीमके पत्तोंके विटामिन भी मिल जाते हैं। इसलिए मैं फिलहाल ताजी सब्जियाँ बिलकुल नहीं ले रहा हूँ, क्योंकि मुझे अभी यह विश्वास नहीं है कि ये सब्जियां आवश्यक हैं। विशेषकर जबकि मैं ये कडुए पत्ते और बिना उबला दूध ले रहा हूँ। जब हम पत्तोंवाली सब्जियाँ उबालें तो किस तापमानपर विटामिन नष्ट हो जाते हैं? विटामिनोंके क्या गुण हैं ? वांच्छित परिमाण में विटामिन प्राप्त करने के लिए मुझे पत्तोंवाली सब्जियाँ कितने परिमाणमें लेनी चाहिए ? कच्चे दूधकी कितनी मात्रासे उपयुक्त परिमाणमें विटामिन मिल सकते हैं ? क्या यह सही है कि दूधको मात्र गरम करनेसे विटामिन नष्ट नहीं होते ? अथवा क्या जब दूधको उबलनेके तापमान तक लाया जाता है तब विटामिन नष्ट हो जाते हैं ?

गिरी वाले फलोंका जिस तरीकेसे आपने प्रयोग करने का सुझाव दिया है, मैंने वैसे ही किया है। मैंने उनका मक्खन बनाया। लुगदी मक्खन जैसी मुलायम थी। मैंने बादामोंका दूध बनाया। इन गिरी वाले फलोंको चाहे कितना ही पिसवाया, फिर भी मैं इसे निभा नहीं सका। ऐसा लगता है कि सभी निर्मास खाद्य पदार्थोंके समान गिरी वाले फलोंको भी पाचनकी दुहरी प्रक्रिया से होकर गुजरना चाहिए । केवल मांसका भोजन ही है जो बड़ी अंतड़ियोंपर असर नहीं डालता । इसलिए इससे पहले कि गिरी- वाले फल दूधके समान पाचक हो जायें, पाचनकी पहली प्रक्रिया मानव शरीरसे बाहर ही पूरी हो जानी चाहिए। जब मैं लन्दनमें था, तब मुझे बताया गया था कि पिघले हुए गिरीवाले फलोंका मांस जैसा ही असर होता है। मैं दुग्धाहार रहित प्रयोग में सफलता प्राप्त करना चाहता हूँ, क्योंकि मुझे विश्वास है कि माताके दूधके अलावा, अन्य दूध मानव-भोजनमें शामिल नहीं है, और न ही भोजन पकाना अनिवार्य है। इसलिए मानवीय आवश्यकताओं के अनुरूप निर्दोष भोजनकी खोज अभी की जानी है। आध्यात्मिक मतसे चौपाये पशुओंके दूधसे प्रति मेरे मनमें बड़ी वितृष्णा और मैं जो बकरीका दूध लेता हूँ, इस बातसे मेरी वितृष्णाका भाव लेश-मात्र भी कम नहीं होता। इससे में अपने संकल्पका केवल नाममात्र ही पालन करता हूँ। मैं जानता हूँ कि ऐसा करने से यदि संकल्प टूटा नहीं है तो संकल्पकी भावना सुरक्षित भी नहीं रह सकी है। मैंने इस भ्रान्तिमें कि मुझे धरतीपर इस शरीरसे अपना काम पूरा करनेके लिए अवश्य जीवित रहना है, बकरीका दूध लेनेके लिए अपने आपको राजी कर लिया है। इसलिए अपनी अन्तरात्माकी अवहेलना करके भी मैं इस धारणापर जमा हुआ हूँ। इसलिए, वह व्यक्ति जो मुझसे दूध छुड़वा सके, एक प्रकारसे मेरा उद्धार करनेवाला होगा। मैं जानता हूँ कि दूध लेनेके कारण ही मेरे कुछ आध्यात्मिक अनुभवों में विघ्न पड़ा। जब मैं कई सालोंतक दृढ़तापूर्वक सूर्यसे पके फलों एवं सूर्यसे पके गिरोवाले फलोंपर आगका इस्तेमाल किये बिना निर्वाह करता रहा तो पाशविक वासनाका केवल सचेतन मनसे दमन अथवा शमन नहीं हुआ था, परन्तु जहाँतक मुझे याद पड़ता है, वासनाका पूरी तरह लोप हो गया था और मुझे विश्वास है कि मैंने वासनापर लगभग विजय पा ली थी। जबसे मैंने फिर दुग्धाहार शुरू किया