हो, अभी मुझे बिस्तरपर पड़े रहना चाहिए। बोलकर पत्र लिखवानेमें मुझे कोई
कठिनाई नहीं होती और थोड़ी देरतक बैठकर लिखनेमें भी कोई कठिनाई नहीं
होती जैसे कि कल मैंने किया था, क्योंकि कल मेरा मौनवार था ।
आप सबको सप्रेम ।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
द्वारा एस० ई० स्टोक्स महोदय
अंग्रेजी (एस० एन० १२५७१) की फोटो-नकलसे।
२७२. पत्र : फूलचन्द शाहको
नन्दी दुर्ग
चैत्र वदी [ ११, २७, अप्रैल, १९२७][१]
आपका पत्र मिला। पोरबन्दरमें महामारी फैल रही है और भाई अमृतलाल ठक्करको डर है कि ऐसी स्थितिमें जून महीनेमें परिषद वहां नहीं हो सकेगी। क्या यह ठीक है ? इसका एक कारण वे मेरे स्वास्थ्यकी अनिश्चितताको भी मानते हैं और मैं भी यही मानता हूँ। इस बारेमें जैसी स्थिति हो मुझे लिखें।
शालाके लिए रुपयोंसे सम्बन्धित पत्र मैंने चि० छगनलालको भेज दिया है और उसे लिख दिया है कि जब और जैसे बने आपको रुपये भेज दिये जायें। आपके पत्रसे में यह भी अर्थ निकालता हूँ कि आपका विचार विद्यापीठमें आनेका नहीं है और फिलहाल यदि आपकी आवश्यकता पूरी हो जाये तो बादमें आप जैसे-तैसे काम चला लेंगे।
खादीके कार्यके बारेमें चि० नारणदाससे पत्र व्यवहार कर रहा हूँ ।
अब दो शब्द सत्याग्रह दलके बारेमें ।
सत्याग्रही जितने भी हों थोड़े हैं। इसलिए सत्याग्रही बननेका प्रयत्न करनेवालोंको भी मेरा आशीर्वाद है ही। किन्तु हमें दल बनाकर क्या विशेष लाभ होगा ? सत्याग्रही तात्कालिक कामकी दृष्टि से भरती हों, यह तो ठीक है। किन्तु कभी ऐसा भी समय आयेगा जबकि हमें उसकी आवश्यकता होगी, तब क्या दल काम आयेगा ? अपने अनुभवके वलपर मेरा कहना यह है कि यदि ऐसा कोई दल हो तो उसके
- ↑ मूलमें चैत्र वदी १० है किन्तु १०वीं तिथिका क्षय हो गया था।